Akbar Birbal story in Hindi – एक बार की बात है जब बादशाह अकबर का बेटा अकबर से सवाल करता है “पिता जी, दुनिया में मनुष्य की कीमत क्या होती है ?”
अकबर अपने बेटे का सवाल सुनकर आश्चर्य में पड़ जाते है और सोचते है कि इतनी छोटी उम्र में बेटे के मन में यह सवाल कैसे आ गया ।
अकबर के पास बेटे के सवाल का जवाब नहीं होता और वे तुरंत बीरबल को बुलाते है ।
बीरबल दरबार में पहुंचते ही सवाल सुनकर अकबर के बेटे को जावद देता है “राजकुमार, अमनुश्य की कीमत आंकना बहुत मुश्किल है वो तो अनमोल है।”
अकबर का बेटा फिर पूछता है “क्या सभी मनुष्य उतने ही किमती और महत्वपूर्ण होते है ?”
बीरबल कहता है “जी राजकुमार, होते है ।”
अकबर का बेटा कुछ समझ नहीं पाता और बीरबल से फिर से सवाल करता है “तो फिर इस दुनिया में कोई अमीर तो कोई गरीब क्यों है और किसी की इज़्ज़त काम तो किसी की इज़्ज़त ज्यादा क्यों है ?”
राजकुमार का सवाल सुनकर बीरबल कुछ देर तक सोच में पड़ जाता है फिर एक दरबान से कहता है कि एक लोहे की छड़ी ले कर आओ ।
दरबार में छड़ी के आते ही बीरबल छड़ी अपने हाथ में लेकर राजकुमार से सवाल करता है “बताइये, इस छड़ी की क्या कीमत होगी ?”
अकबर का बेटा जवाब देता है “इसकी कीमत लगभग ३०० रुपये होगी ।”
फिर बीरबल कहता है “अगर मै इस छड़ी के बहुत सारे छोटे-छोटे कील बनवा दूँ तो फिर इसकी कीमत क्या होगी ?”
अकबर का बेटा जवाब देता है “फिर तो इसकी कीमत बढ़ जाएगी और लगभग १००० हो जाएगी ।”
फिर बीरबल कहता है “अब ये बताओ कि अगर मै इस लोहे की छड़ी को एक सुन्दर तलवार बनवा दूँ फिर इसकी कीमत क्या होगी ?”
अकबर का बेटा कुछ देर तक सोचता है और मन ही मन हिसाब लगता है और कहता है “फिर तो इसकी कीमत बहुत ही ज्यादा हो जाएगी ।”
फिर बीरबल कहता है “इसी तरह हर मनुष्य की कीमत उसके कर्म से मापी जाती है जिसके कर्म अच्छे है उसकी कीमत ज्यादा और जिसके कर्म बुरे है उसकी कीमत कम । “
Also read – Hindi story for class 1 – लोमड़ी की चालाकी
Also read – Animal story in Hindi – भालू और लालची बन्दर
Also read – Friendship story in Hindi – चार बहानेबाज़ दोस्त
Also read – Hindi story for class 2 with moral pdf included – आत्मविश्वास
Also read – Story for kids in Hindi pdf included | ईमानदार बच्चे की कहानी
अगर आपको Akbar Birbal story in Hindi – मनुष्य की कीमत कहानी पसंद आई हो तो कृपया इसे अपने साथियो के साथ शेयर करे। धन्यवाद्।