Baccho ki kahani in Hindi – एक बार की बात है जब हंसों का एक झुण्ड समुद्र तट के ऊपर से गुज़र रहा था, उसी जगह एक कौवा भी हवा में मौज मस्ती कर रहा था।
उसने हंसों को उपेक्षा भरी नज़रों से देखा और मज़ाक के लहजे में बोला “तुम लोग कितनी सुस्त उड़ान भरते हो, तुम लोग और कर ही क्या सकते हो, बस अपना पंख फड़फड़ा कर उड़ान भर सकते हो।
क्या तुम मेरी तरह फूर्ती से उड़ सकते हो? क्या मेरी तरह हवा में कलाबाजियां दिखा सकते हो? नहीं, तुम तो ठीक से जानते भी नहीं कि उड़ना किसे कहते हैं।
कौवे की बात सुनकर एक वृद्ध हंस बोला, ये अच्छी बात है कि तुम ये सब कर लेते हो, लेकिन तुम्हे इस बात पर घमंड नहीं करना चाहिए।
मैं ये सब नहीं जानता, अगर तुम में से कोई भी मेरा मुकाबला कर सकता है तो सामने आये और मुझे हरा कर दिखाए।
एक युवा नर हंस ने कौवे की चुनौती स्वीकार कर ली। यह तय हुआ कि प्रतियोगिता दो चरणों में होगी, पहले चरण में कौवा अपने करतब दिखायेगा और हंस को भी वही करके दिखाना होगा और दूसरे चरण में कौवे को हंस के करतब दोहराने होंगे। प्रतियोगिता शुरू हुई, पहले चरण की शुरुआत कौवे ने की और एक से बढ़कर एक कलाबाजिया दिखाने लगा, वह कभी गोल-गोल चक्कर खाता तो कभी ज़मीन छूते हुए ऊपर उड़ जाता।
वहीँ हंस उसके मुकाबले कुछ ख़ास नहीं कर पाया। कौवा अब और भी बढ़-चढ़ कर बोलने लगा, “मैं तो पहले ही कह रहा था कि तुम लोगों को और कुछ भी नहीं आता है।”
फिर दूसरा चरण शुरू हुआ, हंस ने उड़ान भरी और समुद्र की तरफ उड़ने लगा। कौवा भी उसके पीछे जाने लगा और उसके पास पहुंच कर बोला ”ये कौन सा कमाल दिखा रहे हो, भला सीधे – सीधे उड़ना भी कोई चुनौती है। सच में तुम मूर्ख हो।
हंस बिना कोई जवाब दिए चुप-चाप उड़ता रहा, धीरे-धीरे वे ज़मीन से बहुत दूर होते गए और कौवे का बडबडाना भी कम होता गया और कुछ देर में बिलकुल ही बंद हो गया।
कौवा अब बुरी तरह थक चुका था, इतना कि अब उसके लिए खुद को हवा में रखना भी मुश्किल हो रहा था और वह बार -बार पानी के करीब पहुचता जा रहा था।
हंस कौवे की स्थिति समझ रहा था, पर अनजान बनते हुए उसने कौवे से पूछा, “बाये क्या तुम र-बार पानी क्यों छू रहे हो, क्या ये भी तुम्हारा कोई करतब है।
कौवा बोला ”नहीं, कृपया तुम मुझे माफ़ कर दो, मैं अब बिलकुल थक चुका हूँ और यदि तुमने मेरी मदद नहीं की तो मैं यहीं दम तोड़ दूंगा, मुझे बचा लो मैं अब कभी घमंड नहीं दिखाऊंगा।
हंस को कौवे पर दया आ गयी, उसने सोचा कि चलो कौवा सबक तो सीख ही चुका है, अब उसकी जान बचाना ही ठीक होगा और वह कौवे को अपने पीठ पर बैठा कर वापस तट की ओर ले आया |
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमे हमेशा इस बात को समझना चाहिए कि भले हमें पता ना हो पर हर किसी में कुछ न कुछ अच्छाई होती ही है जो उसे विशेष बनाती है और भले ही हमारे अन्दर हज़ारों अच्छाईयां हों, पर अगर हम उसपे घमंड करते हैं तो देर-सबेर हमें भी कौवे की तरह शर्मिंदा होना पड़ता है।
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