Birbal and Akbar story in Hindi – एक बार की बात है जब दो ठग सेठ के भेष में एक ईमानदार साहूकार के पास आये और उससे बोले, “हम दोनों कुछ जेवरात बेचना चाहते हैं। आपसे निवेदन है कि आप उन्हें बिकवा दें। आपकी बड़ी कृपा होगी।”
साहूकार छल-कपट से परे एक सरल स्वभाव का व्यक्ति था, उसने उत्तर दिया, “जब तक मैं इन जेवरातों को ख़रीददारों को दिखाकर उनसे बातचीत न करूं, तब तक मैं आपको नहीं कह सकता कि ये बिकेंगे या नहीं। इसलिए, आपको इन जेवरातों को मेरे पास छोड़ना होगा। कल दोपहर तक ग्राहकों से बात कर मैं आपको जानकारी दे दूंगा।”
सेठ के रूप में आये ठग बोले, “आप बेशक इन जेवरातों को अपने पास रखें, पर एक बात का ध्यान रखें कि जब हम दोनों एक साथ इन जेवरातों को लेने आयें, तब ही इन्हें लौटाइयेगा। एक के आने पर मत लौटाइयेगा।”
साहूकार ने कहा, “ठीक है, ऐसा ही होगा।”
ठग जेवरात साहूकार के हवाले कर वहाँ से चले गये। कुछ दूर जाने के बाद उनमें से एक ठग साहूकार के पास वापस आया और बोला, “हम ये जेवरात अभी आपके पास नहीं छोड़ना चाहते। आप कृपा कर इन्हें वापस दे दीजिये, हम लोग कल दोपहर फ़िर आपके पास आ जायेंगे।”
साहूकार ने पूछा, “अरे, आपने अभी तो दिया था, अभी ही वापस लेने आ गए और आपके दूसरे साथी कहाँ हैं?”
उस ठग ने उंगली से अपने दूसरे साथी की ओर इशारा कर साहूकार को बताया, “उस चौराहे पर मेरा दूसरा साथी अपने एक मित्र से वार्तालाप कर रहा है। उसके कहने पर ही मैं आपके पास आया हूँ।”
साहूकार ने भी जब दूसरे ठग को चौराहे पर खड़ा देखा, तो उसने विश्वास कर, पहले ठग को जेवरात वापस कर दिए और वह ठग जेवरात लेकर चला गया।
अगले दिन दूसरा ठग साहूकार के पास आया और जेवरात मांगने लगा। इस पर साहूकार बोला, “का जब आप चौराहे पर अपने मित्र से वार्तालाप कर रहे थे, तब आपका दूसरा साथी आया था और वह जेवरातों को ले गया।
मैंने उससे आपके बारे में पूछा, तो उसने आपकी ओर इशारा कर बताया कि आपके ही कहने पर वह आया है। उसकी बातों पर विश्वास कर मैंने उसे जेवरात वापस कर दिए।”
साहूकार की बात सुनकर ठग ने कहा “जब मैनें आपको पहले ही कहा था कि जब तक हम दोनों साथ न आयें, तब तक जेवरात वापस नहीं करना, तो फ़िर आपने ऐसा किया क्यों?
अब मै कुछ नहीं जनता, मुझे मेरे जेवरात चाहिए, आपने गलती की है, तो इसकी भरपाई भी आप ही करेंगे।”
साहूकार ने नम्रतापूर्वक उत्तर दिया, “आप भी तो उस समय चौराहे पर खड़े थे, जब आपका दूसरा साथी जेवरात लेने आया था, तब आपने इस बात पर ध्यान क्यों नहीं दिया?”
साहूकार की बात सुनकर ठग को गुस्सा आ गया, वह गुस्से में आकर बोला, “इससे क्या होता है? क्या मैं कहीं खड़ा नहीं हो सकता। मैंने तो उसे जेवरात लेने भेजा ही नहीं था।”
दोनों का वाद-विवाद बढ़ता चला गया, ठग किसी तरह से भी बिना जेवरात के मानने को तैयार न था। जब उसे जेवरात वापस मिलने की उम्मीद न रही, तो वह साहूकार को धमकी देने लगा कि वह उसे बदनाम कर देगा और जेल की हवा खिलायेगा।
ठग की बात सुनकर साहूकार को भी गुस्सा आ गया, उसने कहा, “ठीक है, तुम्हे जो करना है कर लो।”
ठग ने शीघ्र ही जाकर बादशाह अकबर के दरबार में न्याय की दरख्वास्त दे दी। अकबर ने इस प्रकरण के निपटारे की ज़िम्मेदारी बीरबल को सौंपी।
बीरबल ने आदेश का पालन करते हुए साहूकार को बुलवाया। साहूकार बीरबल के सामने उपस्थित हुआ और सारी बात उसे बताते हुए बड़े-बड़े विश्वसनीय महाजनों की गवाही भी दिलवाई।
बीरबल को तब यकीन हो गया कि ठग का दावा झूठा है और उसने ठग से कहा, “जब यह बात तय हुई थी कि तुम और तुम्हारा साथी एक साथ जेवरात लेने आओगे, तब ही साहूकार तुम्हें जेवरात वापस देगा। फ़िर तुम अभी अकेले क्यों आये हो? तुम्हारा दूसरा साथी कहाँ है?”
इस सवाल का ठग के पास कोई जवाब नहीं था। तब बीरबल ने साहूकार को आज्ञा दी, “जाओ और जब दोनों साथ आयें, तब ही इन्हें मेरे पास ले आना।”
ठग समझ गया कि अब उसकी कोई चालकी नहीं चलेगी, लाचार होकर वह वापस चला गया और फ़िर कभी साहूकार के पास नहीं आया। साहूकार इस न्याय से बहुत ख़ुश हुआ। अकबर ने पूरे दरबार में खुलकर बीरबल की बुद्धि की प्रशंषा की।
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