birbal ki chaturai – एक दिन बादशाह अकबर ने अपने दरबारियों से भरी सभा में पूछा : भाग्य बड़ा है या मेहनत।
सब दरबारियों ने एक मत होकर कहा : हुजूर! मेहनत बड़ी है ? परन्तु बीरबल ने कहा : महाराज! मेरा मानना है कि भाग्य बड़ा है।
बादशाह ने बीरबल से पूछा : यदि मेहनत न की जाय तो भाग्य क्या कर सकता है। भला उस मनुष्य को जो भाग्य के भरोसे बैठा रहे, कभी खाना नसीब हो सकता है?
बीरबल ने उत्तर दिया : चाहे कोई कितनी भी मेहनत क्यों न करे, परन्तु जो उसके भाग्य में लिखा न होगा कदापि नहीं मिल सकता।
यह सब देखते हुए भाग्य को ही प्रधानता मिलनी चाहिये। एक दरबारी को बीरबल की यह दलील बहुत खटकी और उसने बादशाह से निवेदन किया हुजूर! जब बीरबल को भाग्य की प्रधानता मालूम है तो इसका कोई सबूत भी होगा।
बादशाह ने झट बीरबल से पूछा : हाँ बीरबल! इस बात का कोई सबूत दो। बीरबल बोला- हुजूर! यह कोई ऐसी वैसी बात नहीं है जो कोई गाँठ में बाँधे फिर रहा हो और तुरंत खोलकर दिखला दे, आपकी ऐसी ही इच्छा है तो कुछ दिनों में सिद्ध करके दिखला दूँगा।
उस दिन का कार्य समाप्त हुआ और लोग अपने अपने घर चले गये। एक दिन बादशाह की यमुना नदी में सैर करने की इच्छा हुई। कुछ दरबारियों को साथ लेकर, एक खास नौका पर बैठकर यमुनाजी में जल विहार करने लगे। बीच दरिया में बादशाह को भाग्य और मेहनत वाली बात याद आ गई।
उसने बीरबल से कहा : क्यों बीरबल ! अभी तुम्हारा दिमाग ठिकाने आया की नहीं : बोलो मेहनत को भाग्य से प्रधान मानते हो या नहीं ? इस बार भी बीरबल ने पहले वाला उत्तर दिया।
बीरबल की इस हठधर्मी पर बादशाह चिढ़ गया और अपनी मोतियों की माला यमुना के जल में छोड़ दी और बोला : अच्छा बीरबल ! यदि अपने भाग्य की प्रधानता से तू एक मास के अंदर यह माला मुझे न दे सका तो तुझे मौत की सजा दी जाएगी।
सब लोगों ने देखा कि यहाँ पर यमुना जी का जल बहुत गहरा है। यहाँ से माला का मिलना असम्भव है।
अब बीरबल की जान नहीं बच सकती। परन्तु बीरबल ने कुछ जबाव नहीं दिया। वह चुपचाप बैठा रहा। नाव किनारे पर आ लगी। घर लौटते समय बादशाह ने उस जगह अपने सिपाहियों की पहरा चौकी बाँध दी ताकि बीरबल किसी प्रकार उस माला को जल से बाहर न निकाल सके।
बीरबल चुप्पी साधकर बैठा रहा। जब कुछ दिन बीत गये तो बादशाह ने बीरबल से पूछा : क्यो बीरबल माला मिली ? बीरबल ने इन्कार कर दिया। तब बादशाह ने कहा : देखो बीरबल ! अब भी मेहनत की प्रधानता स्वीकार कर लो, मैं तुम्हे माफी दे दूँगा।
बीरबल ने उत्तर दिया जहांपनाह! भाग्य के सामने मेहनत नहीं टिक सकती, मुहावरा मशहूर है-घड़ी में घर जले नौ घड़ी भद्रा अभी तीन दिन का समय और है इतने में तो कितना उलट फेर हो सकता है।
बादशाह एकदम क्रोधित हो गये। जब 3 दिन का समय बीत गया तो चौथे दिन बादशाह ने बीरबल से अपनी माला माँगी। बीरबल ने कहा : हुजूर ! मेरे भाग्य से माला नहीं मिली।
बादशाह क्रोधित होकर बोला- तब मरने के लिये तैयार हो जाओ। बीरबल तो पहले से ही कमर कस चुका था, वह बादशाह के सामने निर्भय होकर खड़ा हो गया। उसे कसकर बाध दिया गया।
बीरबल की दशा पर बादशाह को फिर तरस आ गया और बोले : बीरबल ! अब भी मौका है, तुम मेहनत की प्रधानता स्वीकार कर लो, मैं तुम्हें माफ कर दूँगा। बीरबल ने
उत्तर दिया : हुजूर! मरते को मारना अच्छा नहीं, आप तुरत मुझे मार डालने की आज्ञा दीजिये।
बादशाह ने कहा : अच्छी बात है, जब तू खुद ही आगे आ रहा है। बादशाह ने बीरबल को फाँसी घर ले जाने की आज्ञा दी। वह घर मकान के चौक के पास ही बना हुआ था। बीरबल की यह दशा देख समस्त प्रजा घबरा उठी। बीरबल के घर वाले भी दुखी होकर चुपचाप सब कार्य कलाप देख रहे थे।
वे अब अपना धैर्य कायम न रख सके और सबके सब सिसक सिसक कर रोने लगे। बीरबल को फाँसी के तख्ते पर चढ़ाया गया। नियम के अनुसार जल्लादों ने बीरबल से पूछा : आपकी अन्तिम इच्छा क्या है, उसको पूरी करने के लिये दस मिनट का समय और दिया जाता है।
बीरबल अभी कुछ कह भी नहीं पाया था कि एक मछुआरा आया और बोला मुझे मछली में यह मोतियों की माला मिली है। बीरबल ने जल्लादों से कहा : आप लोगों की अनुमति प्राप्त कर मैं एक बार पुनः बादशाह से मिलना चाहता हूँ।
वे बड़ी प्रसन्नता से बीरबल को बादशाह के पास ले गये। बीरबल को अपने समीप आते हुये देखकर बादशाह ने अनुमान ने लगाया की हो न हो बीरबल डरकर अब मेहनत की प्रधानता स्वीकार करने के लिये मेरे पास आ रहा है, परन्तु अब मैं उसे माफ नहीं करूँगा। मैने पहले ही उसे कई बार मौका दिया था, परन्तु उस समय उसने मेरी बातों पर ध्यान नहीं दिया।
बीरबल ने पास पहुँचकर बादशाह ने को सलाम किया। तब बादशाह ने कहा : बीरबल ! अब तुम्हारा प्रयास करना व्यर्थ है, इस समय चाहे तुम मेहनत की प्रधानता मान भी लो परन्तु मैं अपनी आज्ञा रद्द नहीं करूँगा ।
बीरबल ने कहा : हुजूर! पहले मेरी बात तो सुन लो, मैं मेहनत की प्रधानता मानने नहीं आया हूँ। बादशाह ने कहा : अच्छा कहो।
तब बीरबल बोला :आपकी माला देने आया हूँ इसे पहन लीजिये। बादशाह ने मछुआरे से माला लेकर देखी तो सचमुच वही माला थी।
उन्हे बड़ा आश्चर्य हुआ क्योंकि वे उसे जमुना के अगाध जल में फेंक आये थे। कई बार उलट पूलट कर देखा जब कोई सन्देह न रहा तो बोले : बीरबल यह माला कैसे प्राप्त हुई ?
बीरबल ने जबाब दिया हुजूर ! मेरा भाग्य घसीट लाया है। बादशाह बीरबल से बहुत प्रसन्न हुए और दस हजार मुहरें पुरस्कार में दी। वहां उपस्थित जनता सहित बादशाह ने खुशी से भाग्य की प्रधानता स्वीकार कर ली।
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