Cartoon kahani in Hindi – एक बार की बात है जब एक राज्य के प्रसिद्ध गुरुकुल में एक आचार्य अपने छात्रों से चर्चा कर रहे थे । चर्चा के बीच आचार्य कहते है “मुझे तुम सभी छात्रों से सहायता चाहिए, मुझे मेरी पुत्री का विवाह करना है लेकिन उसके लिए मेरे पास पर्याप्त धन नहीं है, मुझे समझ नहीं आ रहा है कि मै कैसे धन की व्यवस्था करू ।”
छात्रों के बीच से कुछ धनवान छात्र खड़े होते है और कहते है “गुरुदेव, हम अपने माता-पिता से धन मांगकर ले आएँगे और आप उसे गुरु दक्षिणा समझकर स्वीकार कर लीजियेगा ।”
आचर्य कहते है “नहीं-नहीं, मै ऐसा धन नहीं ले सकता, क्योकि अगर मैंने ऐसे धन ले लिया तो तुम्हारे माता-पिता सोचेंगे कि तुम्हारा गुरु कितना लोभी है और अपनी पुत्री का विवाह अपने छात्रों से धन मांगकर करना चाह रहा है ।”
गुरु की बात सुनकर सभी खड़े हुए छात्र बैठ जाते है ।
आचार्य सोच में पड़ जाते है और फिर कुछ समय बाद वह कहते है “मेरे पास एक उपाय है, तुम सभी छात्र अपने घर से धन ले आओ किन्तु मांगकर नहीं, इस प्रकार ले कर आओ कि किसी को भी पता ना चले, इस प्रकार काम भी हो जाएगा और मेरी लाज भी बच जाएगी ।”
सभी छात्रों ने गुरु की बात मान ली और जो छात्र निर्धन परिवारों से थे उन्हें आचार्य कहते है “तुम सभी अपने घर से कुछ ना कुछ लेकर आना लेकिन इस बात का ध्यान रखना कि तुम्हे कोई देख ना पाए नहीं तो वह वस्तु विवाह के लिए अशुभ हो जाएगी ।”
छात्रों ने गुरु को विश्वास दिलाकर कहा कि वे जो भी सामान लाएंगे वह छुपाकर ही लाएंगे ।
अगले दिन से ही छात्र विभिन्न प्रकार की वस्तुए लाने लगे और कुछ दिनों बाद आचार्य देखते है कि विवाह के लिए पर्याप्त धन और सामग्री एकत्रित हो गई है जिसमे सभी छात्रों ने पूरा योगदान दिया, परन्तु एक छात्र ऐसा था जिसने अपने घर से कुछ भी नहीं लाया था ।
आचार्य उस छात्र को बुलाते है और पूछते है “शिष्य, क्या तुम्हारा परिवार इतना निर्धन है कि तुम मेरे लिए कुछ भी नहीं ला सके ?”
छात्र उत्तर देते हुए आचार्य से कहता है “नहीं गुरुदेव, मेरे घर में किसी भी प्रकार का अभाव तो नहीं है परन्तु फिर भी मै आप के लिए कुछ ला नहीं पाया ।”
आचार्य कहते है “ऐसा क्यों, क्या तुम गुरु सेवा नहीं करना चाहते ?”
छात्र कहता है “नहीं गुरुदेव, ऐसी बात नहीं है परन्तु आपने कहा था कि ऐसी वस्तु लाना जिसे उठाते समय कोई देख ना रहा हो, मैंने बहुत प्रयत्न किया परन्तु घर में ऐसी कोई जगह नहीं मिली जहां मुझे कोई देख ना रहा हो ।”
आचार्य कहते है “ऐसा कैसे हो सकता है, तुम झूठ बोल रहे हो, कभी न कभी ऐसा समय आता ही होगा जब तुम्हे कोई देख नहीं रहा होगा, उस समय तुम कुछ उठा कर ला सकते हो ।”
फिर छात्र कहता है “गुरुदेव, आप कि बात ठीक है परन्तृ ऐसा समय जब मुझे कोई नहीं देख रहा होता है तब मै तो अपने आप को देख रहा होता हूँ और मै ऐसा कुकर्म होता हुआ नहीं देख सकता ।”
छात्र की बात सुनकर आचार्य तुरंत उस छात्र को गले लगा लेते है और कहते है “तुम ही मेरे सच्चे शिष्य हो, मेरे कहने पर भी तुमने कुकर्म का मार्ग नहीं अपनाया, यह तुम्हारे चरित्र का प्रमाण है और यही मेरी शिक्षा की सफलता है ।
आचार्य आगे कहते है “अपनी कन्या के विवाह के लिए मुझे धन की आवश्यकता नहीं थी परन्तु मै तो ऐसे युवक को ढूंढ रहा था जो सदाचार और चरित्र का धनि हो और आज मैंने उसे ढूंढ लिया है, तुम ही मेरी कन्या के लिए योग्य वर हो ।”
इस Cartoon kahani hi Hindi – गुरु और चरित्रवान छात्र कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें कभी भी कुकर्म का मार्ग नहीं अपनाना चाहिए क्योकि अंत में इसका परिणाम गलत ही होता है ।
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