पंडित जी का चतुर बालक – Desi kahani in Hindi

Desi kahani in Hindi – एक बार की बात है जब एक राज्य में एक पंडित जी अपनी बुद्धिमत्ता के लिए बहुत प्रसिद्ध थे। उनकी बुद्धिमत्ता के चर्चे दूर-दूर तक हुआ करते थे।

एक दिन राज्य के राजा ने पंडित जी को अपने दरबार में आमंत्रित किया। पंडित जी दरबार में पहुँचे तो राजा ने उनसे कई विषयों पर गहन चर्चा की। चर्चा समाप्त होने के बाद जब पंडित जी प्रस्थान करने लगे, तभी राजा ने उनसे कहा : पंडित जी, मैं आपसे एक बात पूछना चाहता हूँ ।

पंडित जी ने कहा : पूछिए महाराज !

राजा ने पूछा : आप इतने बुद्धिमान है लेकिन आपका पुत्र इतना मूर्ख क्यों और हैं?

राजा का प्रश्न सुनकर पंडित जी को बहुत बुरा लगा फिर भी उन्होंने पूछा : आप ऐसा क्यों कह रहे है महाराज?

राजा ने कहा : पंडितजी, आपके पुत्र को ये भी नहीं पता कि सोने और चाँदी में अधिक मूल्यवान कौन है। ये सुनकर सारे दरबारी हँसने लगे।

सबको यूं हँसता देखकर पंडित जी ने स्वयं को बहुत अपमानित महसूस किया, किंतु वे बिना कुछ कहे अपने घर लौट आये।

घर पहुँचने पर उनका पुत्र उनके लिए पानी लेकर आया और बोला : पिता जी, पानी लीजिये । उस समय भी सारे दरबारियों की हँसी पंडित जी के दिमाग में गूंज रही थी। वे अत्यंत क्रोध में थे।

उन्होंने पानी लेने से मना कर दिया और बोले : पुत्र, पानी तो मै तब लूँगा, जब तुम मेरे इस प्रश्न का उत्तर दोगे।

पूछिये पिता जी : पुत्र ने कहा ।

पंडित जी ने कहा : ये बताओ कि सोने और चाँदी में अधिक मूल्यवान क्या है?

सोना अधिक मूल्यवान होता है पिताश्री पुत्र ने उत्तर दिया।

पुत्र का उत्तर सुनने के बाद पंडित जी ने पूछा : तुमने तो इस प्रश्न का सही उत्तर दिया है, फिर राजा तुम्हें मूर्ख क्यों कहते हैं? वे कहते हैं कि तुम्हें सोने और चाँदी के मूल्य का ज्ञान नहीं है।

पंडित जी की बात सुनकर पुत्र सारा माजरा समझ गया और फिर उसने सारी बात बताते हुए कहा : पिता जी, मैं प्रतिदिन सुबह जिस रास्ते से विद्यालय जाता हूँ, उस रास्ते पर एक किनारे राजा अपना दरबार लगाते है।

वहाँ ज्ञानी और बुद्धिमान लोग बैठकर विभिन्न विषयों पर चर्चा करते है। मुझे वहाँ से जाता हुआ देख राजा अक्सर मुझे बुलाते है और अपने एक हाथ में सोने का और दूसरे हाथ में चाँदी का सिक्का रखकर कहते हैं कि इन दोनों में से तुम्हें जो मूल्यवान लगे, वो उठा लो।

मैं रोज़ चाँदी का सिक्का उठाता हूँ। यह देख वे लोग मेरा परिहास करते हैं और मुझपर हँसते हैं। मैं चुपचाप वहाँ से चला जाता हूँ।

पूरी बात सुनकर पंडितजी ने कहा : पुत्र, जब तुम्हें ज्ञात है कि सोने और चाँदी में से अधिक मूल्यवान सोना है, तो सोने का सिक्का उठाकर ले आया करो। क्यों स्वयं को उनकी दृष्टि में मूर्ख साबित करते हो? तुम्हारे कारण मुझे भी अपमानित होना पड़ता है।

पुत्र हँसते हुए बोला : पिता  जी मेरे साथ अंदर आइये। मैं इसका कारण बताता हूँ।

वह पंडित जी को अंदर के कक्ष में ले गया। वहाँ एक कोने पर एक संदूक रखा हुआ था, उसने वह संदूक खोलकर पंडित जी को दिखाया। पंडित जी आश्चर्यचकित रह गए। उस संदूक में चाँदी के सिक्के भरे हुए थे।

पंडित जी ने पूछा : पुत्र, ये सब कहाँ से आया? पुत्र ने उत्तर दिया : पिता जी, राजा के लिए मुझे रोकना और हाथ में सोने और चाँदी का सिक्का लेकर वह प्रश्न पूछना एक खेल बन गया है। अक्सर वे यह खेल मेरे साथ खेला करते हैं और मैं गलत जवाब देते हुए चाँदी का सिक्का लेकर आ जाता हूँ।

उन्हीं चाँदी के सिक्कों से यह संदूक भर गया है। जिस दिन मैंने सोने का सिक्का उठा लिया, उस दिन ये खेल बंद हो जायेगा। इसलिए मैं कभी भी सोने का सिक्का नहीं उठाता ।

पंडित जी को पुत्र की बात समझ तो आ गई, किंतु वे पूरे राज्य के लोगो को यह बात बताना चाहते थे कि उनका पुत्र मूर्ख नहीं है। इसलिए उसे लेकर वे राजा के दरबार चले गए। वहाँ पुत्र ने राजा को सारी बात बता दी, कि वो जानते हुए भी चाँदी का सिक्का ही क्यों उठाता है ।

पूरी बात जानकर राजा बड़ा प्रसन्न हुआ। उसने सोने के सिक्कों से भरा हुआ संदूक मंगवाया और उसे पंडित जी के पुत्र को देते हुए कहा : असली विद्वान तो तुम निकले।

इस Desi kahani in Hindi – पंडित जी का चतुर बालक कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि कभी भी अपने सामर्थ्य का दिखावा मत करो। कर्म करते रहो, जब समय आएगा, तो पूरी दुनिया को पता चल जायेगा कि आप कितने सामर्थ्यवान हैं। उस दिन आप सोने की तरह चमकोगे और पूरी दुनिया आपका सम्मान करेगी।

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