Funny story in Hindi – एक बार की बात है जब एक गांव में एक पंडित जी थे। उनके पास एक मोटी ताजी दुधारू गाय थी। यह गाय किसी ने उन्हें दान में दी थी। गाय के कारण घर में दूध, घी, दही की कमी नहीं होती थी जिसे खा पीकर पंडित जी मोटे तगड़े होते जा रहे थे।
एक शाम की बात है, पंडित जी जैसे ही दूध दुहने गौशाला पहुंचे तो गाय वहां नहीं थी। खूंटा भी उखड़ा हुआ था। पंडित जी की जान सूख गई। उन्होंने सोचा, ”हो न हो गाय कहीं निकल कर भाग है।”
गाय चूंकि उन्हें बहुत प्रिय थी सो वह फौरन उसे ढूंढ़ने निकल पड़े। थोड़ी दूर पर पंडित जी को एक गाय चरती हुई दिखाई दी। वह खुश हो गए। लेकिन सांझ के समय में यह नहीं जान पाए कि जिसे वह अपनी गाय समझ बैठे हैं, वह पड़ोसी का सांड़ है।
उन्होंने लपककर जैसे ही रस्सी थामी, सांड़ भड़क उठा। जब तक सारी बात समझ में आती, देर हो चुकी थी । सांड़ हुंकारता हुआ उनके पीछे दौड़ पड़ा। मोटे शरीर वाले पंडित जी हांफते हांफते गिरते पड़ते भाग खड़े हुए।
भागते भागते उनका दम निकला जा रहा था और सांड़ था कि हार मानने को तैयार ही नहीं था। आखिरकार एक गड्डा देखकर पंडित जी उसमें कूद गए। सांड़ फिर भी न माना। पीछे पीछे वह भी गड्डे में उतर पड़ा।
पंडित जी फिर भागे, अबकी बार उन्हें भूसे का एक ढेर दिखा, पंडित जी उस पर कूद गए और दम साधकर पड़े रहे। सांड़ ने भूसे के दो एक चक्कर लगाए और थोड़ी देर ठहर कर इधर उधर उन्हें तलाशता रहा, फिर चला गया।
भूसे के ढेर से पंडित जी वापस आए तो उनका रूप बदल चुका था। पूरे शरीर पर भूसा चिपक गया था। वह किसी दूसरे ग्रह के जीव नजर आ रहे थे। तभी उधर से गुजरते हुए एक आदमी की नजर उन पर पड़ी। वह डरकर चीख उठा। उसकी चीख सुनकर दस बीस आदमी उसकी मदद के लिए आ जुटे।
अब आगे-आगे पंडित जी और पीछे पीछे सारे लोग। वह चीखते-चिल्लाते रहे, “भाइयों, मैं पंडित जी हूं”, पर लोगों ने एक न सुनी। भागते-भागते पंडित जी तालाब के पास पहुंच गये। आखिरकार बचने का एकमात्र उपाय देखकर पंडित जी उस तालाब में कूद पड़े, तन से भूसा छूटा तो लोग हैरान रह गए।
जब सारे लोगों को उनकी कहानी मालूम हुई तो सभी वापस अपने घरों को लौट गए। पंडित जी गाय की खोज में हांफते-हांफते आगे बढ़े। गांव के बाहर आम के बाग थे। गाय चरती हुई अक्सर उधर चली जाती थी।
पंडित जी बाग में एक आशा की किरण लिए आगे बढ़े। उन दिनों आम पकने लगे थे। रखवाले बाग में झोंपड़ी बनाकर रखवाली करते थे। जब उन्होंने चुपके-चुपके किसी को बाग में घुसते देखा तो लाठी लेकर शोर मचाते हुए उस ओर दौड़ पड़े, जिस ओर से पंडित जी आ रहे थे।
पंडित जी के होश उड़ गए और वह वहां से भाग खड़े हुए। भागते-भागते वह एक खेत में पहुंचे। खेत में खरबूजे और ककड़ियां बोई थीं। खेत के रखवाले ने गोल मटोल पंडित जी को देखा तो समझा कि कोई जानवर घुस आया है।
वह लाठियां और जलती मशाल लेकर उनके पीछे भागा। अब पंडित जी का धैर्य टूट गया। इस बार भागे तो सीधा घर जाकर रूके। उनकी हालत देखकर पंडिताइन ने पूछा, ”क्यों जी कहां से आ रहे हो?” पंडित जी हांफते हुए बोले, “मैं गाय की खोज में दुबला हो गया और तुम पूछती हो कि कहां से आ रहे हो?
पंडित जी की बात सुनकर पंडिताइन ने कहा “गाय की खोज? गाय तो घर के पिछे बंधी है। गौशाला मे उसका खूंटा उखड़ गया था। इसलिए मैंने गाय को वहाँ ले जाकर बांध दिया था।”
पंडिताइन की बात सुनकर पंडित जी ने अपना सिर पीट लिया और मन ही मन अपने आप को कोसने लगे।
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