Hindi inspirational story – एक बार की बात है जब एक व्यापारी रोज सत्संग में जाता था। व्यापारी ने घर पर पिंजरे में तोता पाला हुआ था। तोता एक दिन व्यापारी से पूछता हैं कि मालिक, आप रोज कहाँ जाते है।
व्यापारी जवाब देता है कि मै रोज़ सत्संग में धर्म और ज्ञान की बाते सुनने जाता हूँ।
फिर तोता कहता है कि मालिक आप महात्मा जी से एक बात पूछना कि मुझे इस पिंजरे से स्वतंत्रता कब मिलेगी।
व्यापारी सत्संग खत्म होने के बाद महात्मा जी से पूछता है कि हमारे घर में जो तोता है उसने पूछा हैं कि उसे पिंजरे से स्वतन्त्रारता कब मिलेगी?
महात्मा जी ऐसा सुनते ही बेहोश होकर गिर जाते है। व्यापारी महात्मा जी की ऐसी हालत देखकर घबरा जाता है और चुप-चाप वहाँ से निकल जाता है।
घर आते ही तोता व्यापारी से पूछता है कि महात्मा जी ने क्या कहा ।
व्यापारी कहता है कि तेरी किस्मत ही खराब है, जो तेरी स्वतंत्रता की बात पूछते ही महात्मा जी बेहोश हो गए।
तोता कहता है कि कोई बात नही मालिक में सब समझ गया।
दूसरे दिन व्यापारी जब सत्संग में जाने के घर से निकलने लगता है तभी तोता पिंजरे में जानबूझ कर बेहोश होकर गिर जाता हैं।
व्यापारी तोते गिरा हुआ देख घबरा जाता है और जैसे ही उसकी जाँच करने के लिए उसे पिंजरे से बाहर निकालता है, तो वो उड़ जाता है।
सत्संग जाते ही महात्मा जी ने व्यापारी से पूछा कि कल आप उस तोते के बारे में पूछ रहे थे ना अब वो कहाँ हैं।
व्यापारी ने कहा : महाराज आज सुबह-सुबह वह जानबुझ कर बेहोश हो गया और जैसे ही उसकी जांच करने के लिए मैंने उसे पिंजरे से बाहर निकाला तो वह उड़ गया।
तब संत ने व्यापारी से कहा कि देखो, तुम इतने समय से सत्संग सुनकर भी आज तक सांसारिक मोह-माया के पिंजरे में फंसे हुए हो और उसे तोते ने बिना सत्संग में आये मेरा एक संकेत समझ कर अपने आप को स्वतंत्र कर लिया।
इस कहानी का यह तात्पर्य है कि हम सत्संग में तो जाते हैं और ज्ञान की बाते भी करते हैं या सुनते है। पर हमारा मन हमेशा सांसारिक बातों में ही उलझा रहता है।
सत्संग में भी हम सिर्फ उन बातों को पसंद करते है जिसमे हमारा स्वार्थ सिद्ध होता हैं। जबकि सत्संग जाकर हमें सत्य को स्वीकार कर सभी बातों को महत्व देना चाहिये और जिस असत्य और अहंकार को हम धारण किये हुए हैं उसे साहस के साथ मन से निकालकर कर सत्य को स्वीकार करना चाहिए।
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