Hindi kahaniya cartoon – एक बार की बात है, भीषण गरमी पड़ रही थी। एक मुसाफिर कच्ची सड़क पर चलता हुआ सोच रहा था, “काश, कोई साधन मिल जाए, अब तो एक कदम चलना भी भारी है।”
तभी उसे दूर से एक बैलगाड़ी आती दिखाई दी। मुसाफिर की जान में जान आई और कुछ ही समय में बैलगाड़ी उसके पास थी।
उसने गाड़ीवाले से कहा, “क्यों भाई, गणेश नगर चलोगे ?” गाड़ीवाले ने हामी में सिर हिला दिया और बोला, “गणेश नगर पहुंचने का एक रुपया लगेगा।”
मुसाफिर आसानी से मान गया। धीरे-धीरे बैलगाड़ी चलने लगी। काफी दूर चलने पर गाड़ीवाले ने बैलगाड़ी रोक दी। मुसाफिर परेशान होते हुए बोला, “क्या बात है, गाड़ी क्यों रोक दी?”
“साहब मैं भोजन करूंगा, फिर चलूंगा।” गाड़ीवाले ने अपनी भोजन की पोटली उठाई और पास के एक पेड़ के नीचे जाकर भोजन करने लगा।
इधर, मुसाफिर तेज धूप से परेशान था, अत: वह गाड़ी से उतरकर जमीन पर गाड़ी की छाया में बैठ गया। थोड़ी देर बाद गाड़ीवाला भोजन करके आ गया और बोला “चलिए साहब उठिए, अब हमें चलना है।”
कुछ देर बाद वे गणेश नगर पहुंच गए। वहां पहुंचकर मुसाफिर बोला, “बहुत-बहुत शुक्रिया दोस्त, ये लो तुम्हारा एक रुपया।”
“एक रुपया, नहीं साहब, दो रुपये दीजिये।” गाड़ीवाला कठोरता से बोला। मुसाफिर को बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने चकित होते हुए कहा, “बात तो एक रुपये की हुई थी, दो रुपये किस बात के?”
गाड़ीवाला समझाते हुए बोला, देखिए साहब, एक रुपया तो गाड़ी की सवारी और एक रुपया गाड़ी की छाया में बैठकर आराम करने का।”
गाड़ीवाले की ऐसी बातों को सुनकर मुसाफिर चकरा गया। वह गाड़ीवाले को एक रुपये से ज्यादा नहीं देना चाहता था।
जबकि गाड़ीवाला दो रुपये लेने के लिए अड़ा हुआ था। थोड़ी देर में उनके बीच बहस होने लगी। उनके झगड़े की आवाज सुन आस-पास भीड़ इकट्ठी हो गई।
भीड़ में से एक व्यक्ति बोला, “चलो, अब इसका फैसला सरपंच ही करेंगे, यहाँ के सरपंच बड़े ही समझदार है ।
इसके बाद मुसाफिर, गाड़ीवाला और गांव के लोग सरपंच के पास पहुंचे, सभी लोग इस विचित्र मुक़दमे का फैसला सुनाने को आतुर थे।
सरपंच ने ध्यान से सारी बात सुनी और मुसाफिर से बोला,”आप एक रुपया निकालिए।” मुसाफिर ने एक रुपया निकाला।
अब सरपंच गाड़ीवाले की तरफ मुड़ता हुआ बोला, “हां भई गाड़ीवाले, अब ये दोनों रुपये ले लो।”
“दोनों रुपये?” गाड़ीवाला चकित होते हुए बोला।
“हां भई, एक जो मुसाफिर के हाथ में है और दूसरा जो जमीन पर उसकी छाया में दिख रही है।” यह सुनकर गाड़ीवाला शर्मिंदा हो गया और चुपचाप एक रुपया लेकर वहां भाग गया। सारे गांव वाले और मुसाफिर सरपंच के इस सटीक फैसले को सुनकर तारीफ करने लगे।
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