Hindi kahaniya moral stories – एक बार की बात है जब एक राज्य का राजा था जो अपनी प्रजा का बहुत ख्याल रखता था।
वह अपनी प्रजा के बीच जाता और उनकी समस्याओं को सुनता था। वह हमेशा कोशिश करता, कि वह उनकी समस्याओं को दूर कर सके।
उनकी कर्तव्यनिष्ठा के चर्चे दूर-दूर तक फैले हुए थे।
एक बार राजा अपने राज्य में भ्रमण करने के लिए निकले हुए थे। रस्ते में लोगो का अभिवादन करते हुए जैसे ही उन्होंने अपना हाथ उठाया, तभी अचानक उनके कुर्ते की सिलाई खुली और कुरता थोड़ा सा फट गया।
यह देख राजा ने अपने मंत्री तो तुरंत बुलाया और उसे आदेश दिया कि वो गांव से एक अच्छे दर्जी को बुला लाएं जो तुरंत उनके कुर्ते सिलाई कर सके।
यह सुन मंत्री ने गांव में दर्जी की खोज शुरू कर दी। संयोग से उन्हें एक दर्जी भी मिल गया।
गांव में उसकी एक छोटी सी दुकान थी। उस दर्जी को जल्दी ही राजा के पास लाया गया।
उस दर्जी से राजा ने कहा कि क्या वो उसके कुर्ते की सिलाई कर सकता है।
दर्जी ने कहा कि राजा साहब, यह तो बड़ा ही आसान काम है। दर्जी ने अपने थैले से धागा निकाला और कुर्ते का बटन लगा दिया।
राजा बेहद खुश हुआ और दर्जी से पूछा कि उसे अपने काम के कितने पैसे चाहिए।
इस पर दर्जी ने कहा कि इतने से काम के लिए वो पैसे नहीं ले सकता है।
इस पर राजा ने कहा कि वो इसकी कीमत जरूर देंगे। दर्जी ने सोचा कि उसने तो बस धागा ही लगाया है।
तो उसके दो रुपये मांग लेता हूं। फिर दर्जी ने सोचा कि कहीं राजा यह न सोचे कि अगर यह मुझसे इतने से काम के दो रुपये मांग रहा है तो गांव वालों से कितना पैसा लेता होगा।
यह सब सोच-समझकर दर्जी ने कहा कि राजा साहब, आप अपनी इच्छा से जो भी देंगे मै ले लूँगा।
यह सुन राजा ने अपनी हैसियत के मुताबिक उसे दो गांव देने का फैसला किया, क्योकि राजा ने भी सोचा कि कहीं समाज में उसका रुतबा छोटा न हो जाए इसलिए उसने यह आदेश दिया।
दर्जी ने मन में सोचा कि कहां तो वो दो रुपये मांग रहा था और कहा राजा ने उसे दो गांव का मालिक बना दिया।
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हम सभी अपनी क्षमता के अनुसार सोचते हैं लेकिन भगवान हमें उनकी क्षमता के हिसाब से सब कुछ देते हैं।
इसलिए गीता में श्रीकृष्ण ने भी कहा कि कर्म करो, फल की इच्छा मत करो और यही इस कहानी का सार भी है।
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