Hindi prernadayak kahaniya – एक समय की बात है जब एक व्यापारी मुल्तानी मिट्टी बेचा करता था।
एक बार वह ऊंटों पर मुल्तानी मिट्टी लादकर राजस्थान से दिल्ली की तरफ जा रहा था।
रास्ते में कई गांवों से गुजरते समय उसकी बहुत-सी मुल्तानी मिट्टी बिक गई। ऊंटों की पीठ पर लदे बोरे आधे तो खाली हो गए और आधे भरे रह गए।
अब वे ऊंट की पीठ पर टिके कैसे? क्योंकि भार एक तरफ हो गया। नौकरों ने पूछा कि क्या करें? व्यापारी बोला, अरे! सोचते क्या हो, बोरों के एक तरफ रेत भर लो।
यह राजस्थान की जमीन है। यहां रेत बहुत है। नौकरों ने वैसा ही किया। ऊंटों की पीठ पर एक तरफ आधे बोरे में मुल्तानी मिट्टी हो गई और दूसरी तरफ आधे बोरे में रेत हो गई।
दिल्ली से एक सज्जन उधर आ रहे थे। उन्होंने ऊंटों पर लदे बोरों में एक तरफ रेत झरते हुए | देखी तो वह बोले कि बोरों में एक तरफ रेत क्यों भरी है?
नौकरों ने कहा : संतुलन बनाने के लिए। वह सज्जन बोला: अरे यह तुम क्या मुर्खता करते हो? तुम्हारा मालिक और तुम एक ही हो। ऊंटों पर मुफ्त में ही भार ढोकर उनको मार रहे हो।
मुल्तानी मिट्टी के आधे-आधे दो बोरों को एक ही जगह बांध दो तो कम-से-कम आधे ऊंट तो बिना भार के खुले चलेंगे।
नौकरों ने कहा : आपकी बात तो ठीक है पर हम वही करेंगे जो हमारा मालिक कहेगा। आप जाकर हमारे मालिक से यह बात कहो और उनसे हमें हुक्म दिलवाओ। वह बंजारे से मिला और उनसे बात कही।
बंजारे ने पूछा : आप कहां के हैं? कहां जा रहे हैं? उसने कहा: मैं बिहार का रहने वाला हूं। रुपए कमाने के लिए दिल्ली गया था। कुछ दिन वहां रहा, फिर बीमार हो गया। जो थोड़े रुपए कमाए थे, वे खर्च हो गए। व्यापार में घाटा लग गया।
पास में कुछ रहा नहीं तो विचार किया कि में घर चलना चाहिए। उसकी बात सुनकर व्यापारी नौकरों से बोला : इसकी राय मत लो। अपने जैसे चलते हैं, वैसे ही चलो।
इनकी बुद्धि तो अच्छी दिखती है, पर उसका नतीजा ठीक नहीं निकलता। अगर ठीक निकलता तो ये धनवान हो जाते।
हमारी बुद्धि भले ही ठीक न दिखे, पर उसका नतीजा ठीक होता है।
मैंने कभी अपने काम में घाटा नहीं खाया। व्यापारी अपने ऊंटों को लेकर दिल्ली पहुंचा।
वहां उसने जमीन खरीदकर मुल्तानी मिट्टी और रेत दोनों का अलग-अलग ढेर लगा दिया और नौकरों से कहा कि ऊंटों को जंगल में ले जाओ और जहां चारा-पानी हो, वहां उनको रखो। यहां उनको चारा खिलाएंगे तो नफा कैसे कमाएंगे।
इधर मुल्तानी मिट्टी बिकनी शुरू हो गई। उधर दिल्ली का बादशाह बीमार हो गया।
वैद्य ने सलाह दी कि अगर बादशाह राजस्थान के रेत के टीले पर रहें तो उनका शरीर ठीक हो सकता है। रेत में शरीर को निरोग करने की शक्ति होती हैं।
अतः बादशाह को राजस्थान भेजो। राजस्थान क्यों भेंजें? वहां की रेत यहीं मंगा लो। ठीक बात है। रेत लाने के लिए ऊंट को भेजो। ऊंट क्यों भेजें ?
यही बाजार में रेत मिल जाएगी। बाजार में कैसे मिल जाएगी? अरे यह दिल्ली का बाजार है, यहां सब कुछ मिलता है।
मैंने एक जगह रेत का ढेर लगा हुआ देखा है । अच्छा! तो फिर जल्दी रेत मंगवा लो। बादशाह के आदमी बंजारे के पास गए और उससे पूछा कि रेत क्या भाव है?
व्यापारी बोला कि चाहे मुल्तानी मिट्टी खरीदो, चाहे रेत खरीदो, एक ही भाव है। दोनों ऊंटों पर बराबर तुलकर आए हैं। बादशाह के आदमियों ने वह सारी रेत खरीद ली।
अगर व्यापारी दिल्ली से आए उस सज्जन की बात मानता तो ये मुफ्त के रुपए कैसे मिलते? इससे सिद्ध हुआ कि बंजारे की बुद्धि ठीक काम करती थी।
इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि किसी ने व्यापार में बहुत धन कमाया हो तो वह जैसा कहे, वैसा ही हम करेंगे तो हमें भी लाभ होगा। उनको लाभ हुआ है तो हमें लाभ क्यों नहीं होगा? उनकी बात समझ में न आए तो भी मान लेनी चाहिए।
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