Hindi story on friendship – एक बार की बात है जब एक राज्य में विक्रमराज नाम का एक राजा था। वह बहुत कठोर और पत्थरदिल इंसान था। किसी की बात नहीं सुनता था। जो भी उसके विरुद्ध आवाज उठाता था, उसको वह कठोर से कठोर सजा देता था।
उस राज्य में विजय और कमल नाम के दो जिगरी दोस्त रहते थे। दोनों को एक दूसरे पर बहुत विश्वास था। राजा के अत्याचार देखकर वह चुपचाप नहीं बैठ पाए ।
एक दिन विजय राजा के बिरुद्ध बात कर रहा था तभी राजा के सैनिको ने यह सुन लिया और तुरंत उसे गिरफ्तार कर राजा के पास उठा ले गए।
राजा के सामने भी विजय उनके विरुद्ध बात कर रहा था। राजा को इस बात पर बहुत गुस्सा आया और राजा ने अपने सैनिको को तुरंत आदेश दिया की वह विजय को कारागार में बंध कर दें।
इस बात का समाचार कमल को मिलते ही वह अपने दोस्त से मिलने कारागार आता है। कारागार पहुंचकर कमल ने कहा, “यह क्या हो गया? तुम्हारे लिए मैं कुछ भी करूँगा मेरे दोस्त। बताओ मैं तुम्हारी कैसे मदद कर सकता हूँ?”
विजय अपने दोस्त को देखकर बहुत खुश हुआ और कहा, “मेरे दोस्त, मरने से पहले मैं अपनी माँ और बहन को देखना चाहता हूँ, उनके खुशहाल जिंदगी के लिए सब प्रबंध करना चाहता हूँ, बस मैं और कुछ नहीं चाहता ।”
कमल तुरंत राजा के पास गया और अपनी दोस्त की आखरी ख्वाहिश के बारे में बताया। उसने राजा से कहा, “राजकुमार, मेरे दोस्त विजय को आप कुछ दिनों के लिए घर जाने दीजिए। जब तक वह वापस नहीं आ जाता मैं उसकी जगह ले लूंगा।”
राजा ने कहा, “अगर तुम्हारा दोस्त फांसी के समय तक वापस नहीं आया तो सजा तुम ही को मिलेगी।”
कमल ने राजा की बात मान ली। कमल का अपने दोस्त पर इतना अन्धविश्वास रखना, यह देखकर राजा भी आश्चर्य चकित रह गए।
कमल को जाने देने से पहले राजकुमार ने कारागार से विजय को बुलाया और कहा, “अगर तुम एक महीने के अंदर वापस नहीं आए तो तुम्हारी जगह तुम्हारे दोस्त कमल को फांसी दे दी जाएगी।”
ऐसा बोलकर राजकुमार ने विजय को जाने दिया। महीना बीत गया और विजय अभी तक वापस नही आया। उस दिन शाम को राजकुमार कारागार में गए और कमल से बोले, “जीवन में कभी भी किसी पर इतना भरोसा नहीं करना चाहिए,
अब देखो इतनी सी छोटी उम्र में तुम्हारी मृत्यु होने वाली है। मुझे इस बात का बहुत दुःख हो रहा है।
उसी समय विजय वापस आ गया और कारागार के अंदर प्रवेश किया । विजय अपने दोस्त कमल के गले मिला और बोला, “मैंने यहाँ जल्दी आने की बहुत कोशिश की लेकिन हो नहीं पाया।
खैर तुम्हारि कृपा से मैं अपनी माँ और बहन से मिल पाया और उनके खुशहाल जीवन के लिए बंदोवस्त कर पाया। मैं तुम्हारा आभारी हूँ दोस्त।”
राजा उन दोनों को देखकर बोले, “आज तक मैंने ऐसी दोस्ती नहीं देखि जिसमे कोई अपनी जान दाओ पर लगा सके। मुझे बहुत गर्भ है की मेरे राज्य में ऐसे लोग भी रहते है। ऐसा बोलकर राजा ने दोनों दोस्तों को छोड़ दिया और वापस अपने घर जाने को कहा।
इस घटना से राजा विक्रमराज का भी ह्रदय परिवर्तन हो गया और वो एकदम दयालु और नरमदिल बन गए ।
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