Imandari par kahani – एक बार की बात है जब दो ईमानदार दोस्त एक सेठ के पास काम मांगने जाते हैं।
सेठ बड़ा ही कंजूस था और उन्हें फ़ौरन काम पर रख लेता है और पूरे साल काम करने पर साल के अंत में दोनों को पंद्रह-पंद्रह स्वर्ण मुद्राएं देने का वचन देता है।
साथ ही सेठ यह भी शर्त रखता है कि अगर उन्होंने काम ठीक से नहीं किया या किसी आदेश का पालन ठीक से नहीं किया, तो उस एक गलती के बदले पांच सुवर्ण मुद्राएं वो उनकी तनख्वाह से काट लेगा।
दोनों दोस्त सेठ की शर्त मान लेते हैं और पूरे साल कड़ी मेहनत करते हैं। दौड़-दौड़कर सारे काम करते और सेठ के हर आदेश का ईमानदारी से पालन करते।
इस तरह पूरा साल बीत गया और साल के अंतिम दिन दोनों सेठ के पास अपनी पंद्रह-पंद्रह स्वर्ण मुद्राएं मांगने जाते हैं, पर सेठ बोलता है कि अभी साल का आखरी दिन पूरा नहीं हुआ है और मुझे तुम दोनों से आज तीन और काम करवाने हैं।
दोनों हैरान थे, पर क्या कर सकते थे। सेठ ने तीन काम बताने शुरू किए – पहला काम : छोटी सुराही में बड़ी सुराही डालकर दिखाओ।
दूसरा काम: दुकान में पड़े गीले अनाज को बिना दुकान के बाहर निकाले सुखाओ।
तीसरा काम: मेरे सर का सही-सही वज़न बताओ।
सेठ की बात सुनकर उन दोनों ने कहा, यह तो असंभव है।
सेठ की चालाकी काम कर गई, उसने कहा कि ठीक है तो फिर यहां से चले जाओ। इन तीन कामों को ना कर पाने के कारण मैं हर एक काम के लिए पांच स्वर्ण मुद्राएं काट रहा हूं।
कंजूस सेठ की इस धोखाधड़ी से उदास होकर दोनों दोस्त दुखी मन से जाने लगते हैं।
उन्हें रास्ते में एक चतुर पंडित मिलता है। उनके ऐसे चेहरे देखकर पंडित उनसे उनकी उदासी का कारण पूछता है और पूरी बात समझने के बाद उन्हें वापस सेठ के पास भेजता है।
दोनों सेठ के पास पहुंचकर बोलते हैं, सेठजी अभी आधा दिन बाकी है, हम आपके तीनों काम कर देते हैं।
सेठ हैरान था, पर सोचा कि उसका क्या बिगड़ेगा। वो तीनों दुकान में जाते हैं। दोनों दोस्त अपना काम शुरू कर देते हैं।
वो बड़ी सुराही को तोड़-तोड़कर उसके टुकड़े कर देते हैं और उन्हें छोटी सुराही के अन्दर डाल देते हैं। जिसे देखकर सेठ मन मसोसकर रह जाता है, पर कुछ कर नहीं पाता।
इसके बाद दोनों गीले अनाज को दुकान के अन्दर फैला देते हैं, तो सेठ बोल पड़ता है कि सिर्फ फैलाने से ये कैसे सूखेगा? इसके लिए तो धूप और हवा चाहिए, सेठ मुस्कुराते हुए कहता है।
देखते जाइए, ऐसा कहते हुए दोनों मित्र हथौड़ा लाकर दुकान की दीवार और छत तोड़ देते हैं, जिससे वहां हवा और धूप दोनों आने लगती है।
क्रोधित मित्रों को देखकर सेठ और उसके आदमी देखते रह जाते हैं, पर किसी की भी उन्हें रोकने की हिम्मत नहीं होती।
अब आख़िरी काम बचा होता है, दोनों मित्र तलवार लेकर सेठ के सामने खड़े हो जाते हैं और कहते हैं कि मालिक आपके सिर का सही-सही वज़न तौलने के लिए इसे धड़ से अलग करना होगा, कृपया बिना हिले स्थिर खड़े रहें।
अब सेठ को समझ आ जाता है कि वह ग़रीबों का हक इस तरह से नहीं मार सकता और बिना आनाकानी के वह उन दोनों को पंद्रह-पंद्रह स्वर्ण मुद्राएं सौंप देता है।
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें हमेशा ईमानदार होना चाहिए क्योकि बेईमानी का फल हमेशा बुरा होता है।
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