kahani for Hindi – एक बार की बात है जब एक गाँव में एक मूर्तिकार रहता था। मूर्तिकला के प्रति बहुत अधिक प्रेम होने के कारण उसने अपना पूरा जीवन मूर्तिकला को समर्पित कर दिया था।
वह इतना पारंगत हो गया था कि उसकी बनाई हर मूर्ति जीवित प्रतीत होती थी। उसकी बनाई मूर्तियों को देखने वाला उसकी कला की बहुत प्रशंसा करता था।
उसकी कला के चर्चे दूर-दूर तक होने लगे थे, इससे मूर्तिकार में अहंकार की भावना जाग गई। वह स्वयं को सर्वश्रेष्ठ मूर्तिकार समझने लगा।
उम्र बढ़ने के साथ जब वह वृद्धावस्था में पहुंच गया और उसका अंतिम समय पास आने लगा, तो वह मृत्यु से बचने के बारे में सोचने लगा। वह किसी भी तरह स्वयं को यमदूत की दृष्टि से बचाना चाहता था, ताकि वह उसके प्राण न हर सके।
अंततः उसे एक तरकीब सूझ ही गई। उसने अपनी बेमिसाल मूर्तिकला का प्रदर्शन करते हुए ग्यारह मूर्तियों का निर्माण किया। वे सभी मूर्तियाँ दिखने में एकदम उसके समान थी।
निर्मित होने के बाद सभी मूर्तियाँ इतनी जीवंत प्रतीत होने लगी कि मूर्तियों और मूर्तिकार में कोई अंतर ही नहीं दिख रहा था। मूर्तिकार उन मूर्तियों के मध्य में जाकर बैठ गया।
तरकीब के अनुसार यमदूत का उसे इन मूर्तियों के मध्य पहचान पाना असंभव था। उसकी तरकीब कारगर भी सिद्ध हुई ।
जब यमदूत उसके प्राण हरने आया, तो ग्यारह एक जैसी मूर्तियों को देख चकित रह गया।
वह उन मूर्तियों में अंतर कर पाने में असमर्थ था। किंतु उसे ज्ञात था कि इन्हीं मूर्तियों के मध्य मूर्तिकार छुपा बैठा है। मूर्तिकार के प्राण हरने के लिए उसकी पहचान आवश्यक थी। उसके प्राण न हर पाने का अर्थ था, प्रकृति के नियम के विरूद्ध जाना ।
प्रकृति के नियम के अनुसार मूर्तिकार का अंत समय आ चुका था। मूर्तिकार की पहचान करने के लिए यमदूत हर मूर्ति को तोड़ कर देख सकता था, किंतु वह कला का अपमान नहीं करना चाहता था, इसलिए इस समस्या का उसने एक अलग ही हल निकाल लिया।
उसे मूर्तिकार के अहंकार का बोध था, अतः उसके अहंकार पर चोट करते हुए वह बोला : वास्तव में सब मूर्तियाँ कला और सौंदर्य का अद्भुत संगम है, किंतु मूर्तिकार एक भूल कर बैठा। यदि वो मेरे सामने होता, तो मैं उसे उस भूल से अवगत करा पाता।
अपनी मूर्ति में भूल की बात सुन अहंकारी मूर्तिकार का अहंकार जाग गया। उससे रहा नहीं गया और झट से अपने स्थान से उठ बैठा और यमदूत से बोला : भूल? असंभव ! मेरी बनाई मूर्तियाँ सर्वदा भूलहीन होती हैं।
यमदूत की युक्ति काम कर चुकी थी, उसने मूर्तिकार को पकड़ लिया और बोला : बेजान मूर्तियाँ बोला नहीं करती और तुम बोल पड़े। यही तुम्हारी भूल है कि अपने अहंकार पर तुम्हारा कोई नियंत्रण नहीं है और इस प्रकार यमदूत मूर्तिकार के प्राण हर यमलोक वापस चला गया।
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें अहंकार को कभी भी खुद पर हावी नहीं होने देना चाहिए, इससे हमें सिर्फ नुकसान ही होता है।
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