अमीर सेठ की गरीब बेटी – Kahani kismat ki

Kahani kismat ki – एक बार की बात है जब एक गांव में एक बहुत ही अमीर सेठ रहता था। उस सेठ के घर में उसकी पत्नी और एक बहुत ही सुंदर बेटी रहती थी।

उस सेठ ने अपनी इकलौती बेटी की शादी पास के ही गांव के एक आमिर व्यापारी से करा दिया।

लेकिन शायद उसकी बेटी के भाग्य में सुख बिल्कुल भी नहीं था क्योंकि उसका पति जुआरी और बहुत बड़ा शराबी था और शादी के कुछ ही साल बाद वह बिल्कुल ही गरीब हो गया।

बेटी की ऐसी हालत देखकर सेठानी रोज सेठ से कहती कि आप इतना दान धर्म करते हो मगर क्या आपको अपनी बेटी की परेशानी बिल्कुल भी नजर नहीं आती, उसकी मदद क्यों नहीं करते?

सेठ ने मुस्कुराते हुए कहा कि भाग्यवान जब अपनी बेटी का भाग्य जागेगा तो खुद ही सब ठीक हो जाएगा और वैसे भी हम कब तक उनकी सहायता करेंगे।

एक दिन सेठ के घर उसकी बेटी और दामाद उनसे मिलने आते हैं, उनकी बेटी अपनी मां के सामने रोने लग गई।

सेठ अपनी बेटी से भी यही कहता है कि बेटी जब तुम्हारा भाग्य जागेगा तो तुम्हें किसी से कुछ भी मांगने की जरूरत नहीं पड़ेगी।

लेकिन फिर भी बेटी की स्थिति पर दया कर सेठ अपनी पत्नी से कहता है कि तुम बेटी को दो बोरी गेहूं दे देना।

सेठानी ने जल्दी-जल्दी बेसन के लड्डू बनाकर उन लड्डूओ के बीच कुछ सोने के सिक्के छुपा दिए और अपनी बेटी और जमाई को दो बोरी गेहूं और बेसन के लड्डू देकर घर से विदा कर दिया।

बेटी और जमाई गेहू की बोरी और बेसन के लड्डू की पोटली लेकर एक टांगे में अपने घर की ओर चले गए।

घर पहुंच हुए उस लड़की के पति ने सोचा कि इस तांगे वाले को किराया ना देकर सास के दिए हुए लड्डू दे देता हूँ, जिससे हमारा किराया बच जाएगा।

घर पहुंच कर वह टाँगेवाला उनका सामान उनके घर पर उतार देता है और तभी उस लड़की का पति उस टाँगेवाले से कहता है कि हमारे पास किराया नहीं है।

हमारे पास यह बेसन से बने स्वादिष्ट लड्डू है, ऐसा करो, तुम ये लड्डूओ से भरी पूरी पोटली ले जाओ।

उस टाँगेवाले ने उसकी मजबूरी देखकर वह लड्डू भरी पोल्टी ले ली, लेकिन फिर उस टाँगेवाले ने सोचा कि मैं इतने सारे लड्डुओं का क्या करूँगा, इनको अपने जानने वाले हलवाई को बेचकर पैसे ले लेता हूँ।

तो उसने गांव में ही एक हलवाई को वो लड्डू बेच दिए और उसके बदले कुछ पैसे ले लिए। उसी समय वह अमीर सेठ भी वही से गुजर रहा था। उसने सोचा कि घर में बनाये लड्डू तो खत्म हो गए होंगे क्यों ना मैं कुछ लड्डू घर के लिए खरीद लूं।

सेठ उसी हलवाई की दुकान जाता है जहाँ उस टाँगेवाले ने सेठानी के लड्डू बेचे थे और संयोग से हलवाई ने सेठ को वहीं लड्डू दे दिए।

जैसे ही वह सेठ खाना खाने के बाद उन लड्डुओं को तोड़कर खाने लगा, तो उसने देखा कि उन लड्डूओ में से सोने के सिक्के निकल रहे हैं।

जैसे ही उसकी पत्नी ने यह देखा तो उसकी आंखों में आंसू आ गए, जिसे देख सेठ ने सेठानी से पूछा कि क्या हुआ तुम्हारी आंखों में आंसू क्यों आ गए।

तब सेठानी बोली कि आपने सही कहा था, बेटी की तो किस्मत ही खराब है। मैंने उसे आपसे छुपाकर इन लड्डूओ में कुछ सोने के सिक्के दिए थे, लेकिन ये लड्डू तो वापस हमारे घर ही आ गए।

सेठ ने अपनी दुखी पत्नी को गले लगाकर कहा कि भाग्यवान मैंने कहा था ना कि बिना भाग्य के किसी को एक दाना भी नहीं मिल सकता।

ये लीला तो ईश्वर की है और जब वो चाहेगा तो अपनी बेटी को किसी के भी आगे हाथ फैलाने की जरूरत नहीं पड़ेगी और एक दिन उसका भी भाग्य जरूर चमकेगा।

इसीलिए कहा जाता है की समय से पहले और किस्मत से ज्यादा किसी को नहीं मिलता।

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