Kahani ya Hindi me – एक बार की बात है जब एक गांव के एक पंडित जी का आध्यात्म की शक्ति में अटल विश्वास था। जो कोई भी उनके घर में एक बार आ जाता वो उनके आतिथ्य और सत्कार के प्रभाव से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता था।
उनके मन में लोगो के लिए बहुत प्रेमभाव था इसलिए लोग उनका बहुत सम्मान करते थे। एक दिन जेल से भागा हुआ चोर रात में शरण लेने के लिए इधर उधर भटक रहा था।
उसने देखा कि पंडित जी के घर का दरवाजा खुला हुआ है तो वो पंडित जी के घर में घुस गया। पंडित जी ने देखते ही उसका अभिवादन किया और उस से कहा, तुम्हारा मेरे घर में स्वागत है मेरे भाई लेकिन तुम ये बताओ तुम कौन हो और यहा क्या करने आये हो?
इस पर चोर ने सफेद झूट बोलते हुए कहा : मैं एक राहगीर हूँ और रास्ता भटक गया हूँ, इसलिए इधर-उधर भटक रहा था और आपके घर का दरवाजा खुला हुआ देखा तो चला आया। क्या मुझे सिर्फ आज रात के लिए सिर छुपाने के लिए जगह मिल सकती है। मैं सुबह होते ही यहा से चला जाऊंगा।
पंडित जी ने उस से कहा : हाँ क्यों नहीं तुम यहा आराम से रह सकते हो और मुझे लगता है तुम बहुत थक गये हो इसलिए तुम जाकर आराम से हाथ मुहं धो लो मैं तुम्हारे खाने और सोने का प्रबंध करता हूँ।
इस पर चोर पंडित जी का आभार व्यक्त करते हुए स्नानघर की ओर बढ़ गया और इतने में पंडित जी ने उसके खाने और सोने की व्यवस्था कर दी।
पंडित जी ने उसका बहुत अच्छे से आदर सत्कार किया और उसे अच्छा भोजन करवाकर उसे सोने के लिए एक कमरे में भेज दिया।
रात को सभी के सो जाने के बाद चोर के मन में चोरी की ईच्छा जागृत हुई और उसने पंडित जी के घर से सोने के दो दीपदान चुरा लिए और वहा से भाग गया।
रात में पुलिस उसकी तलाश में घूम ही रही थी और अंततः वो पुलिस के हत्थे चढ़ ही गया, तो पुलिस ने उसके हाथ में सोने के दीपदान देखकर पूछा की उसने ये कहा से चुराए है?
इस पर चोर ने झूठ बोलते हुए कहा कि यह दीपदान उसने चुराए नहीं है बल्कि एक पंडित जी ने उसे उपहार में दिया है।
पुलिस उसकी बात नहीं मानती है और उसे पंडित जी के घर लेकर आती है और पंडित जी के सामने खड़ा कर उनसे पूछती है कि क्या उन्होंने इस चोर को ये दीपदान उपहार में दिया है।
इस पर पंडित जी ने पुलिस वालों से कहा : कृपया इसे छोड़ दीजिये ये मेरे घर में मेहमान के तौर पर आया था और मैंने ये दीपदान इसे उपहार के तौर पर ही दिया है।
इतने में चोर के ज्ञानचक्षु खुल गये और उसे अपनी भूल का अहसास होने लगा। पंडित जी की उदारता देखते हुए चोर के मन में पश्चाताप होने लगा और उसने क्षमा मांग कर कभी भी चोरी नहीं करने का प्रण लिया।
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