Kahaniya sunao – एक बार की बात है जब एक साधु महाराज गाँव के बाहर वन में स्थित अपनी कुटिया की ओर जा रहे थे। रास्ते में एक बाजार से गुजरते समय साधु महाराज की नजर एक दुकान में रखी ढेर सारी मिठाइयों पर पड़ी।
मिठाइया देखकर साधु महाराज का मन ललचा गया। उनके मन में मिठाई खाने की इच्छा जाग उठी। किंतु उस समय उसके पास पैसे नहीं थे।
उन्होंने अपनी इच्छा पर नियंत्रण रखा और कुटिया चले आए। कुटिया पहुँचने के बाद भी मिठाई का विचार साधु महाराज के मन से नहीं निकल पाया। वह उसी के बारे में सोचते रहे और उस रात को वह ठीक से सो भी नहीं पाए।
अगली सुबह जब वह जगे, तो मिठाई खाने की अपनी इच्छा की पूर्ति के लिए पैसे की व्यवस्था करने के बारे में सोचने लगे।
सूखी लकड़ियाँ बेचकर मिठाई खरीदने लायक पैसों की व्यवस्था अवश्य हो जायेगी, यह सोचकर वह जंगल में गए और सूखी लकड़ियाँ एकत्रित करने लगे।
पर्याप्त लकड़ियाँ एकत्रित कर लेने के बाद उन्होंने उसका गठ्ठर बनाया और उसे अपने कंधे पर लादकर बाज़ार की ओर चल पड़े।
लकड़ियों का गठ्ठर बहुत भारी था। जिसे उठाकर बाजार तक की दूरी तय करना आसान नहीं था, किंतु साधु महाराज चलते गए।
थोड़ी देर में उनके कंधे में दर्द होने लगा। इसलिए विश्राम करने के लिए वह एक स्थान पर रुक गए और थोड़ी देर विश्राम कर वह पुनः लकड़ियाँ उठाकर चलने लगे। इसी तरह रुक-रुक कर किसी तरह वह लकड़ियों के गठ्ठर के साथ बाज़ार पहुँच गए।
बाजार में उन्होंने सारी लकड़ियाँ बेच दी। अब उनके पास इतने पैसे इकठ्ठे हो गए, जिससे वह मिठाई खरीद सके। वह बहुत प्रसन्न हुए और मिठाई की दुकान में पहुँच गए। सारे पैसों से उन्होंने मिठाई खरीद ली और वापस अपनी कुटिया की ओर चल पड़े।
कुटिया की ओर जाते-जाते उनके मन में विचार आया कि आज मुझे मिठाई खाने की इच्छा हुई, हो सकता है कल किसी और वस्तु की इच्छा हो जाये। कभी नए वस्त्रों की इच्छा जाग जायेगी, तो कभी अच्छे घर की, कभी स्त्री और बच्चों की तो कभी धन की। मैं तो साधु हूँ, इस तरह से तो मैं अपनी इच्छाओं का दास बन जाऊंगा।
यह विचार आते ही साधु महाराज ने मिठाई खाने का विचार त्याग दिया। उस समय उनके पास से एक व्यक्ति गुजर रहा था। साधु महाराज ने उसे बुलाया और मिठाई उसे दे दी। इस तरह उन्होंने स्वयं को अपनी इच्छाओं का दास बनने से बचा लिया।
इस Kahaniya sunao – अपनी इच्छाओ पर नियंत्रण कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि यदि हम अपनी इच्छाओं के आगे हार जायेंगे, तो सदा के लिए अपनी इच्छाओं के दास बन जायेंगे। मन चंचल होता है, उसमें रह-रहकर इच्छायें उत्पन्न होती रहती है। जो उचित भी हो सकती हैं और अनुचित भी।
ऐसे में इच्छाओं पर नियंत्रण रखना आवश्यक है । सोच-विचार कर इच्छाओं के आंकलन के उपरांत ही उनकी पूर्ति के लिए कदम बढ़ाना चाहिए। तभी जीवन में सफलता प्राप्त होगी। हमें इच्छाओं का दास नहीं बनना है, बल्कि इच्छाओं को अपना दास बनाना है।
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