ईश्वर पर संदेह क्यों – Ki kahani dikhaiye

Ki kahani dikhaiye – एक बार की बात है जब एक सेठ के पास एक आदमी नौकर का काम करता था। सेठ अपने नौकर से तो बहुत खुश रहते थे।

सेठ जी वैसे तो हमेशा अच्छी मनोदशा में रहते, लेकिन जब भी कुछ बुरा होता तो वह ईश्वर को बहुत बुरा-भला कहते थे। एक दिन सेठ जी खीरा खा रहे थे। संयोग से वह खीरा कड़वा निकला।

सेठ ने वह खीरा अपने नौकर को दे दिया और नौकर ने उसे बड़े चाव से खा भी लिया, जैसे कि वह कोई बहुत स्वादिष्ट हो।

अपने नौकर को कड़वा खीरा बिना किसी परेशानी के कहते देख सेठ जी ने उससे पूछा : खीरा तो बहुत कड़वा था, भला तुमने कैसे इसे बिना किसी परेशानी के खा लिया?

नौकर ने सेठ जी की बात सुनकर कहा : आप मेरे मालिक है, आप रोज ही मुझे स्वादिष्ट भोजन देते हो, अगर एक दिन कुछ कड़वा भी दे दिया तो उसे स्वीकार करने में क्या हर्ज है।

नौकर की बात सुनते ही सेठ जी अपनी भूल समझ गए क्योकि अगर ईश्वर ने इतनी सुख सुविधाएं दी है तो अगर कभी कुछ बुरा दे भी दे तो उनकी सद्भावना पर संदेह करना ठीक नहीं है।

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि जीवन में जो कुछ भी होता है, सबकुछ ईश्वर की मर्जी से होता है। ईश्वर जो करता है अच्छे के लिए ही करता है।

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