Moral kahaniya – एक बार कि बात हैं, जब एक गाँव में एक बहुत ही भले और सज्जन व्यक्ति राधेश्याम का देहाँत हो गया था।
तो जैसे ही उस आदमी के परिवार वालें उसकी अर्थी को श्मशान ले जानें लगे, तभी अचानक एक सेठ ने उस अर्थी का एक पाँव पकड़ लिया और बोला की मरनें वालें इस राधेश्याम को मैंने तीन लाख रुपये का कर्ज दिया था, पहले मुझे मेरे पैसे दो, तभी मैं इसकी अर्थी को श्मशान ले जाने दूँगा।
वहा खड़े सारे लोग आश्चर्य से इस परिस्थिति को देख रहें थें। तभी उनके तीन बेटों नें कहा कि हम तुम्हारा कर्ज़ा नहीं देंगें।
पिताजी का कर्ज़ा पिताजी जानें और वैसे भी अब वो तो इस दुनियां में ही नहीं हैं। अगर तुम्हें इनकी अर्थी रोकनी है तो रोक दो।
ये सुन कर पूरा गाँव, राधेश्याम के तीनों बेटो की बुराई कर रहा था।
राधेश्याम के तीनों बेटे उस कर्जे को देने से पीछे हट गए। तभी राधेश्याम के भाइयों नें भी कह दिया, कि जब बेटे कर्ज़ा नहीं दे सकतें। तो हम क्यों किसी का कर्ज़ा भरें।
अब राधेश्याम की अर्थी रुके हुए बहुत देर हो गयी थीं। तभी ये बात राधेश्याम की इकलौती बेटी तक पहुँच गयी।
वह भागकर अपनें पिताजी की अर्थी के पास पहुँची और उसनें देखा कि उसके पिता की अर्थी का एक पाँव किसी बड़े सेठ नें पकड़ रखा था।
ये देखतें ही उसकी आँख में आँसू आ गए और वह तुरंत अपना सारा ज़ेवर और जितनें भी पैसे उसके पास थें, वो लेकर उस सेठ के पास गई और उसे देते हुए कहा कि सेठ जी अगर ये सब ज़ेवर बेचकर भी आपका कर्ज़ा पूरा न हो पाए तो मैं खुद आपके यहाँ नौकरी करके आपका सारा कर्ज़ा चुकाऊँगी, मगर इस समय मेरे पिताजी की अंतिम यात्रा को मत रिकिये।
तभी उस सेठ नें राधेश्याम की अर्थी का पाँव किसी और को पकड़ाकर उसकी बेटी से बोला कि मुझें माफ़ कर दो बेटी, दरअसल बात ये हैं कि मुझें राधेश्याम से तीन लाख लेने नही बल्कि देनें हैं।
राधेश्याम नें दो साल पहलें मेरी कुछ मजबूरी पड़ने पर अपनी एक जमीन बेचकर मुझें ये तीन लाख रुपये दिए थें और वो तो इतना भला आदमी था कि मुझसे एक रुपया भी ब्याज नही लिया।
आज जब मैं राधेश्याम के रुपये लौटाने आया हूँ, तो मुझें खबर मिली कि उनका तो देहांत हो गया है।
इसलिए मैं बड़ी ही सोच में पड गया था कि अब ये रुपये मैं किसको दूँ बस इसलिए मैंने ये खेल खेला।
ताकि राधेश्याम जी के ये तीन लाख रुपये घर के एक ऐसे सदस्य के पास जाए, जो वाकई में उनको प्यार और उनकी इज्ज़त करता हो, इसलिए ये तीन लाख रुपये मैं तुम्हें सौपता हूं।
बेटी आज तुमने ये साबित कर दिया कि एक बेटी अपने माँ-बाप के लिए एक बेटे से बहुत ज्यादा संवेदनशील होती है। काश तुम जैसी बेटी हर घर में हो, जो अपने पिता की इतनीं इज्जत करती हो।
ये सब देखकर राधेश्याम के बेटे और भाइयो का सिर शर्म से नीचे झुक गया।
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