Naitik mulya par aadharit kahaniya – एक बार की बात है जब एक शहर में दो सुनार भाई एक साथ एक सोने-चांदी के आभूषणों की दुकान चलते थे।
जब वे सोने-चांदी की वस्तुओं की खरीददारी के लिए बाहर जाते, तो उनको दुकान में ताला लगाना पड़ता था।
इस कारण दुकान में आए कई ग्राहकों को निराश होकर खाली हाथ लौटना पड़ता था।
इस समस्या से निपटने के लिए उन्होंने सोचा, क्यों न हम एक योग्य एवं अनुभवी नौकर अपनी दुकान में काम करने के लिए रख लें।
विचार करके उन्होंने एक योग्य, अनुभवी एवं परिश्रमी नौकर की खोज करके उसे अपनी दुकान में रख लिया।
रामलाल पढ़ा-लिखा एवं समझदार था। सोने-चांदी की दुकान पर काम करने का उसे अच्छा-खासा अनुभव था।
दूसरे दिन सुबह ठीक समय पर नौकर रामलाल दुकान पर हाजिर हो गया। दोनों भाइयों ने उसे आभूषणों एवं वस्तुओं के भाव तथा उनके हिसाब से दुकानदारी करने का तरीका समझा दिया। रामलाल तेज बुद्धि का था, इसलिए जल्दी ही सब समझ गया और पहले ही दिन एक कार आकर उनकी दुकान के आगे रुकी।
उसमें से एक सेठ बाहर निकला। सेठ ने दुकान में सजी वस्तुओं एवं गहनों को देखा। तभी उसकी नजर एक बारीक कारीगरी वाली चूड़ियों पर पड़ी।
सेठ ने रामलाल से पूछा, “ये चूड़ियां कितने की हैं?”
रामलाल ने जवाब दिया, “सेठ जी ग्यारह हजार रुपये की।”
सेठ ने रामलाल को दस हजार रुपये दिए और कहा, “मेरे पास अभी इतने ही पैसे है, बाकी के एक हजार रुपये मैं अपने नौकर के हाथ थोड़ी ही देर में भिजवा दूंगा।
रामलाल ने दस हजार रुपये गिने और कहा, “ठीक है सेठ जी, भिजवा दीजिएगा।”
जैसे ही सेठ वह चूडिया लेकर, कार मैं बैठकर रवाना हुआ, दोनों भाई रामलाल पर चिल्लाने लगे, “तुम्हारा दिमाग ख़राब है क्या? दुकान में पहला दिन, पहला ग्राहक और एक हजार रुपये का उधार कर लिया, कौन चुकाएगा सेठ का बकाया धन?”
तभी रामलाल मुस्कराया और कहने लगा, “सेठ जी ही चुकाएंगे अपना बकाया धन। मैं उनसे बात करते ही उनकी आंखों की बेइमानी समझ गया था।”
पहला भाई बोला, “सेठ जी? सेठ जी अब क्यों आएंगे? उन्हें तो आराम से हजार रुपये की बचत हो गई।
दुकान पर वस्तुएं बेचते -बेचते हमारे बाल सफेद हो आए हैं, ऐसे ग्राहक बस धोखा देने ही आते हैं। मैं यह रकम तुम्हारी तनख्वाह में से काटूंगा।”
रामलाल बोला, “आप काट लीजिएगा, पर सेठ जी जरूर आएंगे। मेरा दांव उन्हें खींचकर वापस दुकान पर लाएगा और वह भी हजार रुपयों सहित, आप दोनों देख लीजियेगा।”
दोनों भाइयों को रामलाल पर भरोसा नहीं हुआ लेकिन सेठ जी के हजार रुपये कम देने और उनके चेहरे की चतुराई देखकर रामलाल ने तुरंत अपनी बुद्धि तथा अनुभव से काम लिया था।
चूड़ियां कुल आठ थीं लेकिन उसने चार ही बांध कर सेठ जी को दे दी। उसे मालूम था कि घर जाते ही सेठानी, सेठ जी को चूड़ियों की संख्या कम बताएगी, तब सेठ जी सिर पर पांव रखकर भागे आएंगे।
सारा खेल रामलाल ने काफी सोच-विचार के साथ खेला था और अभी रामलाल ये सब सोच ही रहा था कि सेठ का नौकर आ गया।
रामलाल का अनुमान सही निकला। नौकर ने हजार रुपये रामलाल को दिए और रामलाल ने रुपये लेकर नौकर से बोला, “माफी चाहता हूं, जल्दबाजी में भूल हो गई।” फिर उसने शेष बची चार चूड़ियां सेठ जी के नौकर को दे दी।
फिर रामलाल ने नौकर से कहा, “सेठ जी को कह देना कि मैं पूरी चूड़ियां बांध न सका, इसके लिए क्षमा मांगता हूं।”
नौकर चूडिया लेकर चला गया। तभी दोनों भाई एक साथ बोले, “वाह रामलाल, तुम्हारे अनुभव की तो दाद तेनी पड़ेगी। हमें जैसे व्यक्ति की तलाश थी, वह तुम ही हो।”
रामलाल मन ही मन खुश होने लगा। उसने तुरंत कहा, “मालिक, जानते हैं दुनिया में सबसे कीमती धन क्या है?”
दोनों ने एक साथ कहा, “नहीं!”
रामलाल बोला, “दुनिया का सबसे कीमती धन अनुभव है, जिससे हम सामने वाले की असलियत पहचान सकते हैं।”
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