आश्रम का उत्तराधिकारी – Panchatantra stories for kids in Hindi

Panchatantra stories for kids in Hindi – प्राचीन काल की बात है। एक गुरुजी अपने आश्रम को लेकर बहुत चिंतित थे। वह महसूस कर रहे थे कि उनकी उम्र बढ़ती जा रही है। वह अपना शेष जीवन हिमालय में बिताना चाहते थे। उनको चिंता इस बात को लेकर थी

कि उनके बाद आश्रम में उनकी जगह कौन लेगा। वे तय नहीं कर पा रहे थे कि उनका कौन सा शिष्य ऐसा है जो आश्रम को ठीक से संचालित करेगा।

आश्रम में दो योग्य शिष्य थे और दोनों ही गुरुजी को प्रिय थे। आखिर उन्हें एक युक्ति सूझी।

उन्होंने दोनों को बुलाया और कहा, ‘मैं तीर्थ यात्रा पर जा रहा हूं। मेरे पास ये दो मुट्ठी गेहूं है। मैं तुम दोनों को एक-एक मुट्ठी गेहूं दे रहा हूं। तुम इसे अच्छी तरह संभाल कर रखना और जब मैं वापस आऊं तो यह गेहूं मुझे सुरक्षित लौटा देना।

जो शिष्य मुझे अपने हिस्से का गेहूं सुरक्षित वापस कर देगा मैं उसे ही गुरुकुल का गुरु नियुक्त करूंगा।’ यह आज्ञा देकर गुरुजी चले गए। एक शिष्य गुरुजी को भगवान मानता था। उसने गुरुजी के दिए हुए एक मुट्ठी गेहूं की पोटली बनाई और उसे पवित्र व सुरक्षित स्थान पर रख दिया।

वह हर रोज उस पोटली की पूजा करने लगा। दूसरा शिष्य जो गुरुजी को ज्ञान का देवता मानता था उसने एक मुट्टी गेहूं को गुरुकुल के पीछे खेत में बो दिया। कुछ महीनों बाद जब गुरुजी आए तो उन्होंने दोनों से गेहं वापस मांगा। एक शिष्य ने गुरुजी को गेहूं की पोटली लौटा दी

और बताया कि वह रोज इसकी पूजा करता था। गुरुजी ने देखा पोटली में गेहूं सड़ चुके हैं और अब वे किसी काम के नहीं रहे। दुसरा शिष्य गुरुजी को आश्रम के पीछे ले गया और गेहूं की लहलहाती फसल दिखाकर कहा, ‘मुझे क्षमा करें गुरुजी,

जो गेहूं आप दे गए थे उन्हें मैं अभी नहीं दे सकता।’ गेहूं की लहलहाती फसल देखकर गुरुजी का चित्त प्रसन्न हो गया। उन्होंने कहा कि जो शिष्य गुरु के ज्ञान को फैलाता है, वही श्रेष्ठ पात्र है। सच्ची गुरुदक्षिणा का वास्तविक अर्थ गुरु के ज्ञान का प्रसार है।

उन्होंने दूसरे शिष्य को आश्रम का कार्यभार संभालने के लिए कहा। इसके बाद गुरुजी हिमालय की तरफ चले गए।

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