Prernadayak Vichar ki kahani – एक बार की बात है जब एक गांव में एक लड़का सुबह सुबह दौड़ने जाया करता था।
आते-जाते वो एक बूढी महिला को देखता था। वो बूढी महिला तालाब के किनारे छोटे-छोटे कछुवों की पीठ को साफ़ किया करती थी।
एक दिन उसने इसके पीछे का कारण जानना चाहा। वो लड़का महिला के पास गया और उनका अभिवादन कर बोला : नमस्ते अम्मा जी!
मैं आपको हमेशा इन कछुवों की पीठ साफ करते हुए देखता हूँ, आप ऐसा किस कारण से करती हो?
महिला ने उस मासूम से लड़के को देखा और इस पर लड़के को जवाब दिया : मैं हर दिन यहां आती हूँ और इन छोटे छोटे कछुवों की पीठ साफ करते हुए सुख का अनुभव लेती हूँ।
क्योंकि इनकी पीठ पर जो कवच होता है उस पर कचरा जमा हो जाने की वजह से इनकी गर्मी पैदा करने की क्षमता कम हो जाती है, जिसके कारण ये कछुवे तैरने में मुश्किल का सामना करते है।
कुछ समय बाद तक अगर ऐसा ही रहा, तो इसके ये कवच भी कमजोर हो जाते है, इसलिए मै इनके कवच को साफ करती हूँ।
यह सुनकर लड़का बड़ा हैरान हुआ, लेकिन फिर उसने बूढी महिला से एक जाना पहचाना प्रश्न किया और कहा “अम्मा जी, आप बहुत अच्छा काम कर रही हो, लेकिन फिर भी एक बात सोचिये कि इन जैसे कितने कछुवे है, जो इनसे भी बुरी हालत में है।
जबकि आप सभी के लिए ये नहीं कर सकती तो उनका क्या होगा, क्योंकि आपके अकेले के बदलने से तो कोई बड़ा बदलाव नहीं आयेगा ना ।
महिला ने बड़ा ही संक्षिप्त लेकिन असरदार जवाब दिया कि भले ही मेरे इस कर्म से दुनिया में कोई बड़ा बदलाव नहीं आयेगा लेकिन सोचो इस एक कछुवे के जीवन में तो बदलाव आयेगा ही ना।
हमारे जीवन में बहुत सारे अवसर ऐसे आते है जब हम बुरे हालात का सामना कर रहे होते है और सोचते है कि क्या किया जा सकता है क्योंकि इतनी जल्दी तो सब कुछ बदलना संभव नहीं है।
मेरा ये छोटा सा बदलाव कुछ क्रांति लेकर आए या नहीं, लेकिन मैं आपको बता दूँ, हर चीज़ या हर बदलाव की शुरुआत बहुत ही एक साधारण ढंग से ही होती है।
कई बार तो सफलता हमसे बस थोड़े ही कदम दूर होती है और हम हार मान लेते है, जबकि अपनी क्षमताओं पर भरोसा रख कर किया जाने वाला कोई भी बदलाव छोटा नहीं होता और वो हमारी जिन्दगी में एक नीव का पत्थर भी साबित हो सकता है।
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