Sundarta ka ghamand Ki kahani – एक बार की बात है जब एक जंगल के बीचों-बीच लगा गुलाब का पौधा अपने फूलों की सुंदरता पर इठला रहा था और उसके पास ही लगे चीड़ के कुछ पेड़ आपस में बातें कर रहे थे।
एक चीड़ के पेड़ ने गुलाब को देखकर कहा : गुलाब के फूल कितने सुंदर होते है। मुझे कभी-कभी दुःख होता है कि मैं इसके जैसा सुंदर नहीं हूँ।
दोस्त, दुखी होने की आवश्यकता नहीं है, हर किसी के पास सब कुछ तो नहीं हो सकता। दूसरे चीड़ के पेड़ ने कहा।
गुलाब ने उनकी बातें सुन ली और उसे अपनी सुंदरता पर और ज्यादा घमंड हो गया और वह बोला : इस जंगल में सबसे सुंदर तो मैं ही हूँ।
तभी वही पास में लगे सूरजमुखी के फूल ने उसकी इस बात पर आपत्ति जताते हुए कहा : तुम ऐसा कैसे कह सकते हो? इस जंगल में बहुत सारे सुंदर फूल है और तुम बस उनमें से एक हो।
गुलाब ने इतराते हुए कहा : लेकिन सब मुझे देख कर ही तारीफ़ करते हैं, अब इस नागफनी के पौधे को देख लो, ये कितना बदसूरत है, इस पर तो कांटे ही कांटे हैं, कोई इसकी तारीफ नहीं करता।
अबकी बार चीड़ का पेड़ बोला : ये तुम किस तरह की बात कर रहे हो ? तुममें भी तो कांटे है लेकिन फिर भी तुम सुंदर हो ।
गुलाब को इस बात पर गुस्सा आ गया और वह बोला : तुम्हें तो सुंदरता का मतलब ही नहीं पता। तुम इस तरह मेरे कांटों और उस नागफनी के कांटों की तुलना नहीं कर सकते, हममें बहुत फ़र्क है, मैं सुंदर हूँ पर वो नहीं ।
तुममें घमंड चढ़ गया है गुलाब, इतना कहकर चीड़ के पेड़ ने अपनी डालियों को दूसरी ओर झुका ली। इन सबके बीच नागफनी का पौधा चुपचाप रहा ।
लेकिन गुलाब ने गुस्से में अपनी जड़े नागफनी के पौधे से दूर हटाने की कोशिश की। लेकिन ऐसा संभव नहीं था। कुछ देर प्रयास करने के बाद गुलाब ने चिढ़कर नागफनी के पौधे से कहा : तुम एक निरर्थक पौधे हो, तुममें न सुंदरता है, न ही तुम किसी काम के हो। मुझे दुःख है कि मुझे तुम्हारे पास रहना पड़ रहा है।
गुलाब की बात सुनकर नागफनी को दुःख हुआ और वह बोला : भगवान ने किसी को भी निरर्थक जीवन नहीं दिया है। लेकिन गुलाब ने उसकी बात अनसुनी कर दी।
मौसम बदला और बसंत ऋतु चली गई। धूप की तपिश बढ़ने लगी और पेड़-पौधे मुरझाने लगे। गुलाब भी मुरझाने लगा। एक दिन गुलाब ने देखा कि एक चिड़िया नागफनी के पौधे पर चोंच गड़ाकर बैठी है।
कुछ देर बाद वह चिड़िया वहाँ से उड़ गई। वह चिड़िया ताज़गी से भरी लग रही थी । गुलाब को ये बात समझ नहीं आई कि वह चिड़िया नागफनी पर बैठकर क्या कर रही थी?
उसने चीड़ के पेड़ से पूछा : ये चिड़िया नागफनी के ऊपर बैठकर क्या कर रही थी?
चीड़ के पेड़ ने कहा : ये चिड़िया नागफनी के पौधे से पानी ले रही थी।
गुलाब ने पूछा : ओह, लेकिन क्या इसके चोंच गड़ाने से नागफनी को दर्द नहीं हुआ होगा?
चीड़ के पेड़ ने उत्तर दिया : अवश्य हुआ होगा किंतु दयालु नागफनी चिड़िया को तकलीफ़ में नहीं देख सकता था।
गुलाब ने उदास होकर कहा : ओह, तो इस गर्मी में भी नागफनी के पास पानी है। मैं तो पानी के बिना सूख रहा हूँ।
गुलाब की बात सुनकर चीड़ के पेड़ ने उसे सलाह दी : तुम नागफनी से मदद क्यों नहीं मांगते? वह अवश्य तुम्हारी मदद करेगा। चिड़िया अपनी चोंच में पानी भरकर तुम्हारे पास ले आएगी।
पर गुलाब नागफनी से कैसे मदद मांगता? उसने तो अपनी सुंदरता के घमंड में उसे बहुत बुरा-भला कहा था। लेकिन तेज धूप में अपना जीवन बचाने के लिए आखिरकार एक दिन उसने नागफनी से मदद मांग ही ली।
नागफनी दयालु था, वह मदद के लिए तुरंत तैयार हो गया। चिड़िया भी मदद को आगे आई। उसने नागफनी से पानी चूसा और अपनी चोंच में भरकर गुलाब के पौधे की जड़ों में डाल दिया। गुलाब का पौधा फिर से तरोताज़ा हो गया।
अंततः गुलाब ने नागफनी से माफी मांग ली क्योकि उसे समझ आ गया था कि किसी का बाहरी स्वरुप देखकर उसके बारे में राय नहीं बनानी चाहिए।
इस Sundarta ka ghamand Ki kahani – सुंदरता का घमंड कहानी से हमें यह सीख मिलती है की किसी की सूरत देखकर हमें उनके बारे में कोई राय नहीं बनानी चाहिए। इंसान की बाहरी सुंदरता नहीं, बल्कि आंतरिक सुंदरता मायने रखती है।
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