Swami Vivekananda story in Hindi – स्वामी विवेकानंद बचपन से ही बुद्धिमान छात्र थे। उनके तेज दिमाग और प्रभावशाली बातों की वजह से सभी उनकी तरफ खींचे चले आते थे। एक दिन विद्यालय में भी स्वामी विवेकानंद अपने मित्रो से बातें कर रहे थे।
बातों ही बातों में स्वामी उन सबको एक कहानी सुनाने लगे। उनके मित्रो को कहानी अच्छी लग रही थी, इसलिए सभी ध्यान से सुन रहे थे। विवेकानंद कहानी सुनाने में और उनके मित्र उसे सुनने में इतना खो गए कि किसी को पता ही नहीं चला कि कब उनके शिक्षक कक्षा में आ गए।
शिक्षक ने कक्षा में आते ही बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया। आगे बैठे बच्चे उन्हें ध्यान से सुन रहे थे कि कुछ ही देर में शिक्षक जी के कानों तक विवेकानंद की हल्की आवाज पहुंची।
उन्होंने ऊंची आवाज में पूछा कि कक्षा में कौन बातें कर रहा है?
कक्षा में बैठे अन्य छात्रों ने विवेकानंद और उनके दोस्तों की ओर इशारा कर दिया। यह जानकर शिक्षक को गुस्सा आया। उन्होंने उन सभी को अपने पास बुलाया और पूछा कि मैं अभी क्या पढ़ा रहा था?
कुछ समय तक किसी से कोई उत्तर न मिलने पर उन्होंने हर बच्चे की तरफ देखते हुए सवाल पूछा। सबने अपनी नजरें झुका ली।
तभी शिक्षक विवेकानंद के पास पहुंचे और कहा कि क्या तुम्हें पता है, मैं क्या पढ़ा रहा था?
विवेकानंद ने शिक्षक को सही जवाब दे दिया। तब शिक्षक को लगा कि इन सब बच्चों में से सिर्फ विवेकानंद ही ध्यान से पढ़ रहे थे, दूसरे बच्चे नहीं।
यह सोचते ही शिक्षक ने विवेकानन्द के अलावा अन्य छात्रों को अपनी-अपनी जगह पर दोनों हाथ ऊपर कर खड़े होने की सजा दे दी।
सभी ने शिक्षक की बात मान ली और अपनी जगह पर खड़े हो गए। कुछ ही देर में स्वामी विवेकानंद भी अपनी जगह पर हाथ ऊपर कर खड़े हो गए।
स्वामी को खड़ा देखकर शिक्षक ने कहा कि मैंने तुम्हें सजा नहीं दी है तुम बैठ जाओ ।
नजर झुकाते हुए विवेकानंद ने कहा कि गुरु जी, मैंने ही इन सभी छात्रों को बातों में लगा रखा था, गलती मेरी ही है।
सजा न मिलने पर भी स्वामी विवेकानंद द्वारा सच बोलने पर सभी छात्र बहुत ही प्रभावित हुए और उनकी प्रशंशा करने लगे।
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि जीवन में हमेशा सच बोलना चाहिए। सच बोलकर हम दूसरों को और ज्यादा प्रभावित कर सकते हैं।
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