Tenali Rama ka kissa – एक बार की बात है जब राजा कृष्णदेव राय की माताजी बहुत बीमार पड गई। उन्हें लगा कि अब शीघ्र ही उनकी मृत्यु हो जाएगी।
माताजी को आम बहुत पसंद था, इसलिए जीवन के अन्तिम दिनों में वे आम दान करना चाहती थी।
उन्होंने राजा से पंडितो को आम दान करने की इच्छा प्रकट की। वह समझती थी कि इस प्रकार दान करने से उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति होगी।
आम का मौसम ना होने की वजह से राजा अपनी माता की अंतिम इच्छा पूरी नहीं कर पाया। कुछ दिनों बाद राजा की माता जी अपनी अन्तिम इच्छा की पूर्ति किए बिना ही मृत्यु को प्राप्त हो गईं।
उनकी मृत्यु के बाद राजा ने सभी विद्वान पंडितो को बुलाया और अपनी माँ की अन्तिम अपूर्ण इच्छा के बारे में बताया।
कुछ देर तक चुप रहने के बाद पंडित बोले : यह तो बहुत ही बुरा हुआ महाराज, अन्तिम इच्छा के पूरा न होने की दशा में तो उन्हें मुक्ति ही नहीं मिल सकती।
वे प्रेत योनि में भटकती रहेंगी। महाराज आपको उनकी आत्मा की शान्ति का उपाय करना चाहिये।
तब महाराज ने उनसे अपनी माता की अन्तिम इच्छा की पुर्ति का उपाय पूछा।
पंडित बोले : उनकी आत्मा की शांति के लिये आपको उनकी तेरहवी पर सोने के आमों का दान करना पडेगा।
राजा ने मां की तेरहवी पर कुछ पंडितो को भोजन के लिय बुलाया और प्रत्येक को सोने से बने आम दान में दिए।
जब तेनालीराम को यह पता चला, तो वह तुरन्त समझ गया कि पंडित राजा की सरलता तथा भोलेपन का लाभ उठा रहे है, तो तेनालीराम ने उन पंडितो को सबक सिखाने की एक योजना बनाई।
अगले दिन तेनालीराम ने पंडितो को निमंत्रण पत्र भेजा। उसमें लिखा था कि तेनालीराम भी अपनी माता की पुण्यतिथि पर दान करना चाहता हैं।
क्योंकि तेनालीराम की माता जी भी अपनी एक अधूरी इच्छा लेकर स्वर्ग सिधार गई थी। जब से उसे पता चला है कि उसकी माँ की अन्तिम इच्छा पूरी न होने के कारण आत्मा प्रेत-योनी में भटक रही होंगी, वह बहुत ही दुःखी है और चाहता है कि जल्द ही उसकी माता की आत्मा को शान्ति मिले।
पंडितो ने सोचा कि तेनालीराम के घर से भी बहुत दान मिलेगा क्योंकि वह शाही विदूषक है। सभी पंडित निश्चित दिन तेनाली राम के घर पहुँच गए।
पंडितो को स्वादिष्ट भोजन परोसा गया। भोजन करने के बाद सभी दान मिलने की प्रतीक्षा करने लगे।
तभी उन्होने देखा कि तेनालीराम लोहे के सलाखों को आग में गर्म कर रहा है। पूछने पर तेनालीराम बोला : मेरी माँ फोडों के दर्द से परेशान थी। मृत्यु के समय उन्हें बहुत तेज दर्द हो रहा था।
इससे पहले कि मैं गर्म सलाखों से उनकी सिकाई करता, वह मर चुकी थी। अब उनकी आत्मा की शान्ति के लिए मुझे आपके साथ वैसा ही करना पडेगा, जैसा कि उनकी अन्तिम इच्छा थी।
यह सुनकर पंडित बौखला गए, वे वहा से तुरन्त चले जाना चाहते थे। वे गुस्से में तेनालीराम से बोले कि हमें गर्म सलाखों से दागने पर तुम्हारी मां की आत्मा को शान्ति कैसे मिलेगी?
तब तेनालीराम ने कहा: महाशय, मैं झूठ नहीं बोल रहा हूँ, यदि सोने के आम दान में देने से महाराज की मां की आत्मा को स्वर्ग में शान्ति मिल सकती है तो मैं अपनी मां की अन्तिम इच्छा क्यों नहीं पूरी कर सकता?
यह सुनते ही सभी पंडित समझ गए की तेनालीराम क्या कहना चाहता है। वह बोले : तेनालीराम, हमें क्षमा करो। हम वे सोने के आम तुम्हें दे देते हैं, बस तुम हमें जाने दो।
तेनाली राम ने सोने के आम लेकर पंडितो को जाने दिया, परन्तु एक लालची पंडित ने सारी बात राजा को जाकर बता दी।
यह सुनकर राजा क्रोधित हो गए और उन्होनें तुरंत तेनालीराम को बुलाया।
राजा बोले : तेनालीराम यदि तुम्हे सोने के आम चाहिए थे, तो मुझसे मांग लेते। तुम इतने लालची कैसे हो गए कि तुमने पंडितो से सोने के आम ले लिए?
तेनालीराम ने कहा : महाराज, मैं लालची नहीं हूँ, अपितु मैं तो उनकी लालच की प्रवृत्ति को रोक रहा था।
यदि वे आपकी मां की तेरहवी पर सोने के आम ग्रहण कर सकते हैं, तो मेरी मां की पुण्यतिथि पर लोहे की गर्म सलाखें क्यों नहीं झेल सकते?
राजा तेनाली राम की बातों का अर्थ समझ गए। उन्होंने पंडितो को बुलाया और उन्हें भविष्य में लालच त्यागने को कहा।
सभी पंडितो ने भविष्य में कभी भी लालच ना करने की कसम खाई, तब राजा ने उनको जाने दिया।
इस Tenali Rama ka kissa – सोने के आम का दान कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि लालच हमें हमेशा परेशानी में डाल देता है। इसलिए कभी लालच नहीं करना चाहिए।
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