तेनाली रमन और शतरंज का खेल – Tenali Rama story in Hindi

Tenali rama story in hindi – एक बार की बात है जब राजा कृष्णदेव राय के अन्य दरबारी तेनालीराम से ईर्ष्या करते हुए तरह-तरह के इल्जाम लगाकर उसे दण्डित करने का प्रेस कर रहे थे।

किन्तु तेनालीराम की सूझ-बूझ के सामने उनकी एक न चलती और उन्हें लज्जित होकर रह जाना पड़ता।

दरबारी इस बात को अच्छी तरह जानते थे कि तेनालीराम शतरंज खेलना नहीं जानता था। एक बार उन्होंने तेनालीराम की इस कमजोरी का लाभ उठाने का निश्चय किया।

अगले ही दिन एक दरबारी राजा के पास पहुंच कर बोला : महाराज आप तो शतरंज के बहुत शौकीन है। पर बहुत दिनों से आपने शतरंज नहीं खेला, ऐसी क्या बात है।

राजा ने जवाब दिया : क्या बताऊं, मेरी सभा में ऐसा कोई नहीं है जो इस खेल में माहिर हो। इसलिए मन मारकर रहना पड़ता है।

दरबारी ने कहा: क्या कह रहे हो महाराज! तेनालीराम ने आपको नहीं बताया ? वह तो शतरंज का कीड़ा है। उसके दांव पर बड़े-बड़े खिलाड़ी संन्यास ले चुके हैं। क्यों नहीं आप उसके साथ अपना मनोरंजन करते। दरबारी ने दांव मारा।

राजा ने कहा : लेकिन तेनालीराम ने हमसे कभी नहीं कहा कि वह शतरंज जानता है। दरबारी ने कहा : आपकी हार नहीं देखना चाहता महाराज, यही कारण है कि आपको नहीं बताया। उसके जैसा खिलाड़ी तो पूरे देश में नहीं मिलेगा।

दरबारी ने विश्वास दिलाया तो राजा को यकीन हो गया। दूसरी शाम राजा शतरंज बिछवा दी और इन्कार करने पर भी तेनाली राम को जबरदस्ती अपने साथ बिठा लिया।

सभी दरबारी आसपास खड़े होकर तमाशा देखने लगे और बोले, तेनालीराम जी आप तो शतरंज के चतुर खिलाड़ी हो और फिर महाराज के साथ खेल रहे हो, ऐसा सुअवसर किसको मिलता है। खूब मन लगाकर खेलो।

तेनालीराम समझ गया कि यह सब दुष्ट-मंत्रियों का षड्यंत्र है। विवश होकर उसने चाल चलनी शुरू की। खेलना तो वह जानता न था, थोड़ी ही देर में बाजी हार गया।

दरबारीयों ने ठहाका लगाकर उसकी हंसी उड़ाई और बोले, तेनालीराम सब कुछ जानते हुए भी क्यों मूर्खता करते हो।

महाराज जैसे खिलाड़ियों को इस तरह खेल में मजा नहीं आयेगा। जरा जमकर खेलो। चाहो तो महाराज से इनाम ले लेना, पर खेल का मजा किरकिरा न करो।

दरबारियों की बात सुनकर महाराज को लगा कि तेनालीराम मन लगाकर नहीं खेल रहा है। राजा को क्रोध आ गया।

वे तेनालीराम से बोले, यदि तुमने मन लगा कर नहीं खेला तो मैं तुम्हें दण्ड दूंगा | तेनालीराम ने मन-ही-मन सोचा, बुरे फंसे और बोला महाराज ! वास्तव में मुझे इस खेल का ज्ञान नहीं है। मैं इस खेल के बारे में कुछ नहीं जानता।

राजा ने क्रोधित होकर कहा : अगर तुम दूसरी बाजी भी हार गये तो कल भरी सभा में तुम्हारा मुण्डन-संस्कार करवा दूंगा। अब सोच लो तुम्हें क्या करना है। दूसरी बाजी आरम्भ हुई। तेनालीराम ने भरपूर जोर लगाया, किन्तु बाजी न जीत सका। एक ही झटके में वह हारकर एक किनारे बैठ गया।

राजा ने कहा : तेनालीराम ! तुमने हमें खूब छकाया है। इसका बदला हम कल चुकाएंगे। कहकर वहीं खेल समाप्त कर दिया।

तेनालीराम के चेहरे पर उदासी छा गई, जबकि सभी दरबारियों के चेहरे प्रसन्नता से खिल उठे। आज पहली बार तेनालीराम के हारकर एक किनारे बैठ गया। राजा ने कहा : तेनालीराम ! तुमने हमें खूब छकाया है।

इसका बदला हम कल चुकाएंगे। कहकर वहीं खेल समाप्त कर दिया।

तेनालीराम के चेहरे पर उदासी छा गई, जबकि सभी दरबारियों के चेहरे प्रसन्नता से खिल उठे। आज पहली बार तेनालीराम के प्रति उनका षड़यंत्र सफल होने जा रहा था।

अगले दिन दरबार लगते ही राजा ने नाई को बुलवाया और आदेश दिया कि तेनालीराम के पूरे सिर के बाल उस्तरे से मूंड दे। नाई सकपका गया। इतने बड़े आदमी का सिर कैसे मूंड दे।

परन्तु राजा की आज्ञा को टाला नहीं जा सकता था। वह बैठकर अपना उस्तरा तेज करने लगा। तेनालीराम ने राजा से कहा : महाराज! एक निवेदन करना चाहता हूं। हां, हां कहो, क्या कहना है। मैंने इन बालों पर दस हजार अशर्फिया उधार ले रखी है।

जब तक वह कर्जा मैं नहीं चुका देता, तब तक इन बालों पर मेरा अधिकार नहीं है।

राजा ने तुरंत आज्ञा दी कि तेनालीराम को दस हजार अशर्फियां दी जाएं। मंत्री ने अशर्फियां तेनालीराम के घर भिजवा दी। अब तो तेनालीराम को नाई के आगे बैठना ही पड़ा।

नाई ने जैसे ही सर की ओर उस्तरा बढ़ाया, तेनालीराम ने उसे रोक लिया और धीरे-धीरे मंत्रों का उच्चारण करने लगा।

उसकी यह क्रिया देख राजा आश्चर्यचकित हुआ और बोला, अब क्या ढोंग रचने लगे तेनालीराम ! मुण्डन जल्दी करवाओ।

तेनालीराम ने कहा : महाराज ! हमारे यहां सिर का मुण्डन माता-पिता के स्वर्ग सिधारने पर ही किया जाता है।

मेरे माता-पिता दोनों ही स्वर्ग सिधार चुके हैं। अब तो आप ही मेरे माता-पिता हैं। आपका कोई अनिष्ट न हो, इसलिए प्रभु से प्रार्थना कर रहा हूं।

अपने अनिष्ट की बात सुनते ही राजा घबरा उठा और बोला अरे, यह तो मैंने सोचा ही नहीं था, आपको मुण्डन कराने की जरूरत नहीं है। मैं अपने आदेश को वापस लेता हूं।

राजा का इतना कहना था कि दरबारियों के ऊपर घड़ों पानी पड़ गया। तेनालीराम ने दस हजार अशर्फियां भी मार लीं और मुण्डन कराने से भी बच गया।

शतरंज में मात खाकर भी उसने अपने विरोधियों को ऐसी मात दी कि उन्हें बहुत लज्जित होना पड़ा।

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